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________________ स्वरादेश १ अकार 7 उझुणी ( ध्वनि: ) वसुं ( विष्वग् ) । नियम ८४ (वन्द्र खण्डिते णा वा १।५३ ) वन्द्र और खण्डित शब्द के आदि अकोण सहित उ विकल्प से होता है । अकार / उ वुद्रं, वन्द्रं (वन्द्रः ) खुडिओ, खण्डिओ, ( खण्डितः ) नियम ८५ ( गवये वः १०५४ ) गवय शब्द में व के अ को उ होता है । गउओ ( गवयः ) गउआ (स्त्री) । प्रयोग वाक्य ८१ freerefore अज्ज मए घयपुण्णो रोट्टगो पत्तो । मेवाडदेसस्स अंगारपरिपाचिआ पसिद्धा अत्थि । चुण्णं अट्टगं वा अन्तरेण रुट्टिआ न भवइ । हरियाणावासिणी घयचोरिं पउरं खाअंति । सामिआ सत्थस्स हियाय नत्थि । द्विणा सत्तू एव भुंजंति । अस्स गिहे अवसामिआ कहं अस्थि ? सो सागरहियं केवलं छप्पत्तिअं चव्वइ । पव्वदिणे घरे-घरे पोलिआओ भवंति । इमम्मि देसे वेसणस कढिआ करेंति जणा । अहं भोयणे मकुट्टरुट्टि अहिलसामि । घयपुण्णा मकायरुट्टिआ कस्स न अइ । वेसणरुट्टिआ दहिणा सह रुइअरा भवइ । अमुम्मि गामम्मि मासरुट्टिआ कास घरे लहिस्सइ । णयरे लोआ दुद्ध ेण सह पिट्ठगा अब्भूसा वा खाअंति । धातु प्रयोग सा पुप्फाई चिड़ । पज्जिआए सव्वंगसंधीओ फुडंति । णिद्दाए as निमीलति । कित्ती णयरस्स पसिद्ध उज्जाणे रविवारे अट्टइ । सो महं मोरउल्ला कुप्पइ । रायकुमारी सकज्जं सोमवारे संपज्जिहिइ । तस्स चक्खू इ कहं न उम्मिल्लति । अव्यय प्रयोग कि इओ साहुणी गआ ? णाणा दव्वाई सो भुंजइ भोयणे । किं आउ सो गामाओ बहिद्धा गओ ? किमवि वत्थु एगंततो न निच्चं न अणिच्चं अत्थि । तुमं अत्थ केवच्चिरं ठाहिसि ? साहू अत्थि ? तुमं तहिं विहर जहिं जिणसासणस्स पभावणा भवेज्ज कज्जं कि तुमए कथं ? आम, कअं । प्राकृत तहिं को । एअं Jain Education International में अनुवाद करो साग के साथ रोटी खाने से अन्न का स्वाद नहीं आता है । रोटी को दह के साथ मैंने अनेक बार खाया है। घी से पूर्ण वाटी हर व्यक्ति नहीं पचा सकता | गंदा हुआ वासी आटा भी समय पर काम आता है। घी और चीनी युक्त सत्तू मिठाई बन जाता है। पांच आदमियों के लिए यह आटा पर्याप्त नहीं है । परोठा सदा नहीं खाना चाहिए। वह आज फुलका क्यों नहीं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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