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स्वर परिवतन
ओ -- अधरोष्ठ : -- अहरुट्टं । नीलोत्पलम् - नीलुप्पलं । • स्वरों को स्वर का आदेश आगे के पाठों में देखो ।
प्रयोग वाक्य
सितं अन्तरेण दुद्ध पायव्वं । गुडम्मि मच्छिआओ ( मक्खियां ) आयान्ति । पायसे अप्पा सिया अत्थि । मज्झ खण्डा रोअइ । तुमे सियाले हो किमट्ठे कओ ? गिम्हकाले सक्करोदयस्स पओगो पउरो भवइ । महुस्स अहियो पओगो ण कायव्वो । गुलस्स पओगो सत्थाय लाहअरो भवइ । जत्ताए अग हुत्त (अकबर) अम्हे फाणिअं खादीअ । तुमं अज्ज घयमच्छंडिअसं पुन्नं महंत रोट्टगं लभिहिसि । सो वातासम्म ओसहि गिण्हइ । नीरेण सह छहामूली सत्यस्स हिअं भवइ । धातु प्रयोग
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मणुआ जं भुजंति तं चे न नोहरेज्ज तया लुक्को भविस्सइ । जे स्थाई सयं पवखालंति तेसि सारीरियो परिस्समो भवइ । सुसीला नव्वाइ वत्थाई' कहं कत्तई ? रायहाणीए सावगा आयरियं विष्णवेंति तत्थ आगमणाय । पालिपुत्तं गत्ता तुमं क्या मज्झ पोत्थयाई पट्ठवहिसि ? सा केसा सारइ । तुमं मुह मुहु किं सुअसि ? सा पुत्तवहू घरे रोगिणो सुस्सूसइ ।
अव्यय प्रयोग
तं अन्तरेण अहं तत्थ न गमिस्सामि । तुमए सव्वद्धा न भोक्तव्वं । तिणा दोसो कओ अओ सो पायच्छित्तस्स भागी अत्थि । अहं णाई दोसं करेमि । अणअहंकार को जंपर ? गामं अभितो पव्वया संति । सो सीसो अप्पेव अत्थि । तुज्झ जंपणेण अलं । अम्मी तुमए सव्वं दुद्ध पीअं । रुक्खस्स अहत्ता तुम कहं सुत्तं ? तुमं चे अत्थ आगमिस्ससि अहं तुं पोत्थयं दास्सामि ( देहामि) ।
प्राकृत में अनुवाद करो
प्राकृतिचिकित्सक (पागइयचिइच्छओ) चीनी को सफेद जहर मानते हैं । मधु का प्रयोग दवा में होता है । गुड-घी सहित रोटी लोग शीतकाल में खाते हैं। आयुर्वेद में खांड को उपयोगी माना है। क्या तुम चासनी से मिठाई बनाना चाहते हो ? लोग गर्मी में शरबत पीते हैं । आर्द्रगुड भी लोग खाते हैं । देवालय में रमेश बतासा बांटता (विअर ) है । सालममिश्री यहां कहां मिलती है ?
धातु का प्रयोग करो
गुरु के पैरों को कौन प्रक्षालन करता है ? जो आहार करता है वह नीहार भी करता है । स्वास्थ्य के लिए क्या नहीं खाना आवश्यक है ? भक्त
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