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________________ ७६ प्राकृत वाक्यरचना बोष ह्रस्व स्वरों का दीर्धीकरण नियम ७३ लुप्त य र व श ष सां श ष सां दीर्घः ११४३) शकार, षकार और सकार के पूर्ववर्ती या उत्तरवर्ती संयुक्त वर्ण य, र, व, श, ष और स हो तो इनका लोप हो जाता है, लोप होने के बाद शकार, षकार और सकार के आदि (पूर्ववर्ती) स्वर दीर्घ हो जाता है। श के साथ य लोप-पश्यति--पासइ । कश्यप:---कासवो । आवश्यक -आवासयं । श के साथ र लोप--विश्रम्यति-वीसमइ । विश्रामः-वीसामो। मिथ-मीसं । संस्पर्श:-संफासो । श के साथ व लोप-अश्वः-आसो। विश्वसिति ---वीससइ । विश्वासः-वीसासो। श के साथ श का लोप-दुशासन:---दूसासणो मनःशिला मणासिला। ष के साथ य लोप--शिष्य:--सीसो । पुष्यः--पूसो। मनुष्यःमणूसो ष के साथ र लोप---कर्षक:--कासओ। वर्षा ----वासा। वर्ष:वासो। ष के साथ व लोप--विष्वाण: (वीसाणो) विष्वक्-वीसं ष के साथ ष लोप-निष्षिक्त:-नीसित्तो। स के साथ य लोप-सस्यम्--सासं । कस्यचित्-कासइ । स के साथ र लोप-उस्र:-ऊसो। विस्रम्भ:-वीसम्भो। स के साथ व लोप-विकस्वर:-विकासरो। निःस्व:-नीसो । स के साथ स लोप-निस्सहः-नीसहो । नोट-दीर्घ स्वर का विधान करने से 'न वीर्घानुस्वारात्' नियम से दीर्घ स्वर से परे "अनादोशेषादेशयो द्वित्वं" से होने वाला शेषवर्ण हित्व नहीं हुआ है। दीर्घ स्वरों का ह्रस्वीकरण ___ नियम ७४ (हस्वः संयोगे १८४) दीर्घ स्वर से परे यदि संयुक्त अक्षर हो तो दीर्घस्वर ह्रस्व हो जाता है। आ-आम्रम्-अम्बं । ताम्रम्--तम्बं । विहराग्नि:-विरहग्गी। आस्यम्-अस्सं । ई-मुनीन्द्रः---मुणिन्दो । तीर्थम्-तित्थं । ऊ-गुरूल्लाप:---गुरुल्लावा । चूर्णः-चण्णो । ए-नरेन्द्रः- नरिन्दो । म्लेच्छ:-मिलिच्छो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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