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आठ
प्राकृत वाक्यरचना बोध के संपादन का आदेश दिया। यह पुस्तक उस
आदेश की ही क्रियान्विति है। ० युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी और युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ की प्रेरणा से ही मैंने इसमें प्रवेश किया है । आचार्य का अनुग्रह ही शिष्य को ज्ञान की ओर प्रेरित करता है। मैं इन महापुरुषों को श्रद्धा से वंदना
करता हुआ आशीर्वाद मांगता हूं कि मुझे बोधि, मार्ग और गति दें। ० मैं अपना सौभाग्य मानता हूं, युवाचार्य महाप्रज्ञ (मुनि श्री नथमलजी)
की ५० वर्ष पूर्व की भावना को साकार करने का मुझे अवसर मिला। • मुनिश्री दुलह राजजी का हृदय से आभारी हूं, जिन्होंने आदि से अंत
तक प्रूफों को देखा और आवश्यक सुझाव भी दिए। ० मुनि ऋषभकुमारजी ने पाली चतुर्मास में मेरे सारे कामों का भार
अपने ऊपर ओढकर मुझे समय उपलब्ध कराया । परिशिष्ट बनाने में भी उनका सहयोग रहा है। ० मुनि विमल कुमारजी ने आदि से अंत तक पाण्डुलिपि को देखकर ___ अनेक संशोधन सुझाए। • मुनि दिनेश कुमारजी और जै. वि. भा. मा. वि. के प्राकृत लेक्चरार
जगतराम भट्टाचार्य ने परिशिष्टों को तैयार करने में बहुत श्रम दिया
० मुनि प्रशांत कुमारजी का भी सहयोग रहा है। ० समणी और पा. शि. सं. की मुमुक्षु बहनों ने पाण्डुलिपि की सुन्दर ___ अक्षरों में शुद्ध प्रतिलिपि तैयार की। ० पुस्तक को संवारने में मुनि धनंजय कुमारजी का विशेष सहयोग
रहा है। ० अंत में उन सबका योगदान भी स्मरणीय है, जिनकी पुस्तकों का
मैंने उपयोग किया है तथा जो प्रत्यक्ष व परोक्ष में मेरे सहयोगी रहे हैं। ० सभी के सहयोग की परिणति रूप यह प्राकृत वाक्यरचना बोध ___ आपके हाथों में है। • इसकी उपयोगिता विद्यार्थियों व पाठकों पर निर्भर है, वे कितने
लाभान्वित होते हैं। • दृष्टि दोष और प्रेस दोष से जो अशुद्धियां रह गई हैं, उनके लिए अंत
में शुद्धि पत्र है। ० एक निवेदन-शुद्धिपत्र से अशुद्धियों को पहले शुद्ध कर पढना प्रारंभ
करें। आपके अमूल्य सुझाव व अभिमत भी हमें दें, जिससे भविष्य में
परिष्कत रूप में आपके हाथों में आ सके । ११ दिसम्बर, ६१
मुनि श्रीचन्द 'कमल' जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.)
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