________________
अभिमत
युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ प्रणीत एवं मुनिश्री श्रीचंद कमल द्वारा संपादित 'प्राकृत वाक्य-रचना बोध' प्राकृत भाषा के लिए एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इसकी लेखन शैली बहुत नवीन है। यह प्राकृत के छात्र-छात्राओं के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। वे इस ग्रंथ के माध्यम से प्राकृत भाषा की अच्छी जानकारी कर सकेंगे। इस पुस्तक में ११८ अध्याय हैं । साथ ही इसमें सात परिशिष्ट हैं--१. प्राकृत शब्द रूपावली, २. प्राकृत धातु रूपावली, ३. अपभ्रंश शब्द रूपावली, ४. अपभ्रंश धातु रूपावली, ५. हिन्दी के अकारादि क्रम से शब्द, ६. हिन्दी के अकारादि क्रम से एक अर्थ में होने वाली धातुएं, ७. वैदिक संस्कृत और प्राकृत की तुलना । लेखक ने कितनी दृष्टियों से विषय का प्रतिपादन किया है यह इसे देखने से स्पष्टतः ज्ञात होता है । यह अपने आप में एक प्रशंसनीय कार्य है।
भाषा सीखने के मुख्य चार उद्देश्य बताए गये हैं१. बोलना [to speak] २. समझना [to understand] ३. पढना [to read] ४. लिखना [to write]
साधारणतः इन्हें बोलने-समझने एवं पढने-लिखने रूप दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है। अधिकांशतः जो लोग भाषा सीखते हैं । उनका विशेष ध्यान भाषा बोलने और समझने की ओर रहता है। किन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो पढने और लिखने की दृष्टि से भाषा सीखते हैं। उनका मूल उद्देश्य है-उस भाषा-विशेष की पुस्तक पढना और लिखने की चेष्टा करना। ये लोग भाषा बोल एवं समझ नहीं सकते, ऐसा नहीं है, किन्तु वे लोग जो भाषा साधारणतः सीखते हैं, वह लिखित ग्रन्थ की भाषा होती है । जो लोग मात्र भाषा बोलना एवं समझना चाहते हैं, वे उस भाषा के लेखन एवं पढने की ओर दृष्टि कम देते हैं । उनका उद्देश्य सिर्फ लोगों के साथ बात करना एवं उनकी भाषा समझना होता है। आजकल भाषाशिक्षण की दृष्टि से जो व्याकरण लिखते हैं, वे बोलने एवं समझने की ओर विशेष ध्यान रखते हैं अर्थात् उनके व्याकरण लिखने का मूल उद्देश्य है भाषा का वर्णन करना । जिस प्रकार जनसामान्य बोलते हैं, वे उसी प्रकार व्याकरण में लिपिबद्ध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org