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________________ दस करते हैं। इस प्रकार की भाषाशिक्षणपद्धति वर्णनात्मक भाषा विज्ञान के अन्तर्गत आती है । जो भाषा पढने एवं लिखने के प्रति दृष्टि रखकर व्याकरण लिखते हैं, उनकी व्याकरण भी वर्णनात्मक होती है किन्तु उस वर्णनात्मक व्याकरण में ऐतिहासिक विज्ञान की पद्धति की छाप रहती है। भाषा की व्याकरण इन दो पद्धतियों से लिखना प्रचलित है। इन दो पद्धतियों के अतिरिक्त अन्य दो धाराओं से भी व्याकरण की चर्चा होती है। वे दो धाराएं हैं-तुलनात्मक भाषातत्त्व एवं दर्शनमूलक भाषातत्त्व । इन दो धाराओं से व्याकरण तभी पढना संभव है जब वर्णनात्मक एवं ऐतिहासिक धारा के अनुसार भाषा का शिक्षण होता है। युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ रचित प्राकृत वाक्यरचनाबोध व्याकरण की ऐसी रचना है, जिसमें वर्णनात्मक एवं ऐतिहासिक भाषा तत्त्व का समन्वय हुआ है । दो धाराओं को एक धारा में परिणत करना अत्यन्त कठिन है। व्याकरणशास्त्र में पांडित्य होने पर ही यह संभव है । इस पुस्तक का अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार की सुतीक्ष्ण दृष्टि इस ग्रन्थ में सर्वत्र प्रतिफलित हुई है। उन्होंने प्रत्येक अध्याय में जिस विषय पर दृष्टि रखी है उस विषय के गहन में प्रवेश किया है। साथ ही विषय को किसी भी स्थिति में नीरस नहीं होने दिया है। किस प्रकार उन्होंने वर्णनात्मक एवं ऐतिहासिक व्याकरण का समन्वय किया है, उसके एक-दो उदाहरण प्रस्तुत करने पर समझा जा सकेगा। जैसे 'तुम् प्रत्यय' अध्याय में उन्होंने प्रथम में कुछ शब्द चयनित किए हैं और साथ-साथ में उस अध्याय में तुम् प्रत्ययान्त कुछ धातुएं भी दी हैं । यथा-काउं (कर्तुम्) घेत्तु (ग्रहीतुम्], जोद्धं (योद्धम् ) इत्यादि । एवं इनका प्रयोग भी प्राकृत भाषा के माध्यम से दर्शाया है जैसे-इमं कज्जं तुए विणा को अण्णो काउं सक्कइ, सो सुमिणस्स अट्ठे घेत्तु सुविणसत्थपाढयस्स घरं गओ । ऐसे अनेक उदाहरण हैं। __ वास्तव में भाषा सीखने की यही सही पद्धति है। जिस प्रकार का व्याकरण का विषय साधारणत: वर्णन किया जाता है, यदि उसी प्रकार की वाक्य-रचना दी जाये तब भाषा सीखने में बहुत सुविधा होती है। ठीक इसी प्रकार कुछ अंश हिन्दी से प्राकृत अनुवाद हेतु दिए गए हैं। इससे जहां भाषा का प्रयोग सीखा जाता है ठीक उसी प्रकार भाषा में प्रयोग भी किया जाता है। सबसे प्रशंसनीय यह है कि बहुत छोटे-छोटे प्राकृत के वाक्यों का प्रयोग किया गया है। लेखक ने स्वयं इन वाक्यों की रचना कर प्रयोग बताया है। इसके परिणामस्वरूप भाषा सीखने वालों को विशेष सुविधा होगी, ऐसा मैं समझता हूं। एक और विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि इन वाक्यों की विषयवस्तु पूर्णतः सर्वसाधारण के कथोपकथन के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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