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हेत्वथं कृदन्त
तव्य प्रत्यय एवं भविष्यत्कालीन प्रत्यय परे होने पर पूर्व धातु में होने वाले अ को इ तथा ए हो जाता है। व्यंजनान्त धातु के अंत में अ नित्य आता है तथा स्वरान्त धातुओं के अंत में अ विकल्प से होता है। तए-हस् + अ हसित्तए, हसेत्तए (हसितुं) हंसने के लिए
हो--अ-होइत्तए, होएत्तए, होत्तए (भवितुं) होने के लिए तुं (5)-~हस् । अ-हसितुं, हसेतुं, हसिउ, हसेउ।
हो- अ - होइतुं, होएतुं, होतुं । होइउ, होएउ, होउ।
नियम ६६ [क्त्वा-तुम्-तव्येषु घेत् ४१२१०] क्त्वा, तुम् और तथ्य प्रत्यय परे होने पर ग्रह धातु को घेत् आदेश होता है । घेत्तुं (ग्रहीतुं) ग्रहण करने के लिए।
___ नियम ६७ [वचो वोत् ४।२११] क्त्वा, तुम और तव्य प्रत्यय परे होने पर वच् धातु को वोत् आदेश होता है । वोत्तुं (वक्तुं) बोलने के लिए।
नियम ६८ [रुदभुजमुचां तोन्यस्य ४॥२१२] क्त्वा, तुम् और तव्य प्रत्यय परे होने पर रुद्, भुज् तथा मुच् धातुओं के अन्त्य को त आदेश होता
रुद्... रोत्तु (रोने के लिए) । भुज् ---भोत्तु (खाने के लिए) मुच्--मोत्तुं (छोडने के लिए)
नियम ६६ [दशस्तेन 8ः ४१२१३] दश धातु के अन्त्य को तु के तकार सहित 8 आदेश होता है । दृश्—दटुं (देखने के लिए)
नियम ७० [आ कृगो भूत भविष्यतोश्च ४१२१४] कृ धातु के अंत को आ आदेश होता है, भूत और भविष्य काल में तथा क्त्वा, तुम् और तव्य प्रत्यय परे हो तो। काउ (करने के लिए)
प्रेरक [जिन्नन्त] हेत्वर्थ कृदन्त के रूप बनाने का नियम-जिन्नन्त की धातु के जो रूप बनते हैं (देखो-पाठ ६२, ६३, ६४) । उनके आगे तुं (उ) या तए प्रत्यय लगाने से हेत्वर्थ कृदन्त के रूप बनते हैं ।
भणावितुं, भणाविउ, भणावित्तए-पढाने के लिए। प्रयोग वाक्य
परोप्परं पेम्मेण ठाअव्वं । सव्वेसि जणाण कल्लाणं होउ । सत्थचक्खु अन्तरेण मणुओ अंधो अत्थि । सो जोइसिअस्स पासे पण्हं पुच्छिउ गच्छइ । तुज्झ कज्जं अज्ज को काउ इच्छइ ? जो पट्ट जंपइ सो जीवणववहारे पियो न लग्गइ । तुमए एगते भासणाय पयण्णो कायव्वो। अहं सुविणम्मि एगं सिंघं पासिसु । सव्वेहिं णियसत्तीए कज्जे कायव्वं । सिज्जसेण एगवरिसपेरंतो एगंतरोववासो कओ। धम्मसहाए सव्वजाइजणा आगच्छति ।)
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