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________________ २१ हेत्वर्थ कृदन्त (तुम् प्रत्यय) शब्द संग्रह परस्पर---परोप्परं स्पष्ट----पट्ट कल्याण-कल्लाणं स्वप्न ----सुविणो शास्त्र--सत्थं शक्ति-सत्ती पाठक-पाढयो सभा-सहा कार्य --- कज्ज श्रेयांस-सिज्जंसो प्रयत्न--पयण्णो धातु संग्रह गमित्तए-जाने के लिए अणुणेउ-अनुनय करने के लिए रोविउ ----रोने के लिए बिहरित्तए, विहरेत्तए---विहार के लिए विवदित्तए----विवाद करने के लिए घेत्तु-लेने के लिए पयासिउ--प्रकट करने के लिए पासित्तए, पासेत्तए-देखने के लिए खादि खाने के लिए जग्गि-जागने के लिए गाउ गाने के लिए, काउ, कटुं-करने के लिए लद्ध पाने के लिए रोद्ध--रोकने के लिए जोद्ध-युद्ध करने के लिए अव्यय संग्रह मग्गतो (मार्गतः)-पीछे से सज्ज (सद्य:)---शीघ्र सिय (स्यात् )--कथंचित् पेच्च (प्रेत्य)-परलोक मणा, मणयं (मनाङ)-थोडा मोरउल्ला--व्यर्थ मुहूं, मुहु-बार-बार सर्व शब्द तीनों लिंगों में याद करो । देखो---परिशिष्ट १ संख्या ४३ क, ४६ ख, ४३ ग । तुम् प्रत्यय धातु में तुं और तए प्रत्यय लगाने पर हेत्वर्थ कृदन्त (तुम् प्रत्यय) के रूप बनते हैं । त्तए प्रत्यय के रूप जैन आगमों में विशेष रूप मिलते हैं। तुं (उ) और तए प्रत्यय का अर्थ होता है-के लिए। नियम ६५ [एज्चाक्त्वा तुम् तव्यभविष्यस्सु ३३१५७] क्त्वा, तुम्, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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