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प्राकृत वाक्यरचना बोध
नियम ४० [बेव च आमन्त्रणे २११९४] वेव्व और वेव्वे अव्यय आमंत्रण अर्थ में । वेव गोले (हे गोल ! ), वेल्वे मुरन्द ले वहसि पाणि (हे मुरन्दले (त्वं) वहसि पानीयम्) ।
नियम ४१ [मामि हलाहले सख्यावा २०१६] मामि, हला, हले, सहि-ये चार अव्यय सखि के आमंत्रण अर्थ में। मामि सरिसक्खाणं वि (सखि ! सदृशाक्षराणामपि), पणवह माणस्स हला (प्रणमत मानस्य सखि !)। हले हयासस्स (सखि ! हताशास्य) सहि एरिसिच्चिय गइ (हेसखि ! ईदृशी एव गति:) ।
नियम ४२ [वे संमुखी करणे च २०१६६] दे अव्यय सम्मुखीकरण और सखि के आमन्त्रण अर्थ में। दे पसिअ ताव सुन्दरि (हे सुन्दरि ! प्रसीद तावत्), दे आपसिय निअत्तसु (हे सखि ! आप्रसद्य निवर्तस्व) ।
नियम ४३ [हुं दानपच्छानिवारणे २०१९७] हुं अव्यय दान, पृच्छा और निवारण अर्थ में । हुं गेण्ह अप्पणो च्चिअ (हुं गृहाण आत्मन एव)
पृच्छा-हुं साहसु सम्भावं (हुं कथय सद्भावम्) । निवारणे-हुं निल्लज्ज समोसर (हुं निर्लज्ज समपसर) ।
नियम ४४ [हु खु निश्चय-वितर्क-संभावन-विस्मये २०१९८] हु और खु अव्यय निश्चय, विर्तक, संभावन तथा विस्मय अर्थ में। निश्चय-तं पिहु अच्छिन्नसिरी (त्वमपि हु अच्छिन्नश्रीः), तं खु सिरीए रहस्सं (तत् खु श्रिया रहस्यम्)।
बितर्क-न हु णवरं संगहिआ (न हु णवरं संगृहीता), एवं खु हसइ (सम्भावयामि एतां हसति)।
संशय-जलहरो खु धूमवडलो खु (जलधरो वा धूमपटले वा)। संभावन--तरीणह णवर इमं (केवल मिमं तरीतुं न संभावयामि)। विस्मय–को खु एसो सहस्ससिरो (आश्चर्य, क एषः सहस्र शिराः) ।
नियम ४५ [क गरेक्षेप विस्मय-सूचने २११९६] ऊ अव्यय गर्दा, आक्षेप, विस्मय और सूचन अर्थ में।
गर्हा-ऊ णिल्लज्ज (ऊ निर्लज्ज)। आक्षेप-- किं मए भणिों (ऊ किं मया भणितम्) । विस्मय:-ऊ कह मुणिआ अहयं (ऊ कथं ज्ञाता अहं) । सूचन-ऊ केण न विण्णायं (ऊ केन न विज्ञातम्) ।
नियम ४६ [थ कुत्सायाम् २१२००] थू अव्यय कुत्सा के अर्थ में। थू निल्लज्जो लोओ (५ निर्लज्ज: लोकः)।
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