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... अव्यय
जिस शब्द के रूप में कुछ भी व्यय न होता हो उसे अव्यय कहते हैं । अव्यय का प्रयोग उसी रूप में होता है जैसा वह शब्द है। उसमें न कुछ घटता है और न कुछ बढता है। अव्यय में किसी भी विभक्ति और किसी भी वचन का प्रभाव नहीं रहता। वह सब स्थिति में एकरूप रहता है । स्फुट अव्यय पूर्व के पाठों में दिये गए हैं और आगे भी। फिर भी नियमपूर्वक कुछ अव्यय यहां दिए जा रहे हैं ।
नियम २२ (तं वास्योपन्यासे २।१७६) तं अव्यय वाक्य के उपन्यास के अर्थ में । तं तिअसवन्दिमोक्खं (तं त्रिदशबन्दिमोक्षं)।।
नियम २३ [आम अभ्युपगमे २.१७७] आम अव्यय स्वीकार करने के अर्थ में । आम वहला वणोली (सत्यं बहला वनोली)।
नियम २४ [गवि वैपरीत्ये २११७८ ] णवि अव्यय वैपरीत्य ( . . . . . . ) के अर्थ में । णवि हा वणे (न हा बने) ।
नियम २५ [पुनरुत्तं कृतकरणे २।१७८] पुनरुत्तं अव्यय बारम्बार या, फिर-फिर के अर्थ में। अइ सुप्पइ पंसुलि णीसहेहिं अंगेहि पुणरुत्तं (अयि स्वपिति पांसुली निस्सहैः अङ गैः पुनरुक्तम् )
नियम २६ [हन्दि विषाद विकल्प पश्चात्ताप निश्चय सत्ये २११८०] हन्दि अव्यय विषाद, (खेद) विकल्प, पश्चात्ताप, निश्चय, सत्य----इन अर्थों में ।
___हन्दि चलणे णओ सो (हन्दि चरणे नतः सः) । ण माणिओ हंदि हुज्ज एताहे (न मानितः हन्दि भवेत् इदानीम् ) । हन्दि न होही भणिरी (हन्दि न भविष्यति भणिका) । सा सिज्जइ हन्दि तुह कज्जे (सा खिद्यति हन्दि तव कार्ये) ।
__ नियम २७ [हन्द च गृहणार्थे २॥१८१] हन्द अव्यय, लो या 'ग्रहण करो' के अर्थ में । हन्द पलोएसु इमं (हन्द प्रलोकस्व इमाम् ) ।
नियम २८ [मिव पिव विव ब्य व विअ इवार्थे वा २११५२] इव अर्थ में प्राकृत में मिव, पिव, विव, व्व, व, विअ और इव अव्यय हैं।
कुमुअं मिव (कुमुदं इव), हंसो विव (हंसो इव), चंदणं पिव (चन्दन इव), सायरो व्व (सागरो इव), खीरोओ व (क्षीरोदो इव), कमलं विअ (कमलं इव) ।
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