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प्राकृत वाक्यरचना बोध
पह
कहीं पर अंत में मकार न हो उसको भी अनुस्वार हो जाता हैवणम्मि-वर्णमि । मुणिम्मि-मुणिमि ।
नियम १४ (वा स्वरे मश्च ११२४] अंत में होने वाले मकार से परे स्वर हो तो अनुस्वार विकल्प से होता है । पक्ष में लुक न होकर मकार को मकार हो जाता है।
वन्दे उसभं अजिअं वन्दे उसभमजिअं नयरं आगच्छइ =नयर मागच्छइ।
(बहुलाधिकारात् अन्य शब्दों के अंतिम व्यंजन का भी अनुस्वार हो
जाता है। अंतिम व्यंजन 7 अनुस्वार साक्षात्-- सक्खं पृथक्-पिहं
यत्--- (जं) तत्-तं विष्वक्-वीसु
सम्यक् --सम्म ऋधक्-इहं ऋधका.----इहयं १ नोट-शब्द-सिद्धि की दृष्टि से ऋधक शब्द का इहं बना है। जिसका अर्थ
है—अलग । इहयं-इहं शन्द से स्वार्थ में क प्रत्यय हुआ है। पिशल पैरा ५६८ के अनुसार जैन महाराष्ट्री और अर्धमागधी में इह का ही इह रूप मिलता है। इहमेगेसि नो सण्णा भवइ (आयारो १११।१)---आयारो में अनेक स्थानों पर इहं रूप मिलता है। जाइं इमाइं इहं माणुस्सलोए हवेति (जीवाभिगम ३।११६) । महाराष्ट्री में अज्ज अव्यय का रूप अन्जं मिलता है ।
नियम १५ [उ आ ण नो व्यञ्जने ११२५] ङ, ञ, ण और न के बाद व्यंजन हो तो इनको अनुस्वार हो जाता है। पङक्ति-पंती
षण्मुख:-छंमुहो पराङ मुख:-परंमुहो. उत्कण्ठा-उक्कंठा कञ्चुक:--कंचुओ सन्ध्या-संझा लाञ्छनम्---लंछणं विन्ध्यः-विझो
नियम १९ [विंशत्यावे लुक १।२८] विंशति आदि शब्दों में होने बाले अनुस्वार का लुक हो जाता है। अनुस्वार 7 लुक् विशति:-वीसा त्रिंशत्- तीसा
___ संस्कृतम्-सक्कयं संस्कार:--सक्कारो वियम १७ [मांसादेर्वा २२६] मांस आदि शब्दों में होने वाला भनुस्वार का लुक् विकल्प से होता है । अनुस्वार / लुक मांसम् ---मांसं, मंसं, मांसलम्--मांसलं, मंसलं
कांस्यम्-कांसं, कंसं पांसुः--पासू, पंसू कथम् ---कह, कहं . एवम् ---एव, एवं .
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