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________________ प्राकृत वाक्यरचना बोध केण+अपि केणवि, केणावि (केन+अपि) जणा+अपि जणावि (जना: अपि) किं+अपि-कि पि, किमवि (किमपि) कह+अपि= कहंपि कहमवि (कथमपि) नियम ११ (इतेः स्वरात् तश्च दिः १२४२) पद से परे इति अव्यय के आदि इ का लुक होता है । स्वर से परे त द्वित्व हो जाता है, अनुस्वार से परे हो तो त द्वित्व नहीं होता। तहा+ इति तहत्ति (तथा+ इति) पुरिसो+ इति=पुरिसोत्ति (पुरुषः+ इति) पिओ+इति=पिओत्ति (प्रियः+ इति) किं--इति=किति (किमिति) दिट्ठ+इति-दिट्ठति= दृष्टमिति नियम १२ (त्यदायव्ययात् तत्स्वरस्य सुक् ११४०) सर्वनाम संबंधी स्वर या अव्यय के स्वर से परे सर्वनाम और अव्यय का स्वर हो तो आगे वाले पद के आदि स्वर का लुक् हो जाता है । अम्हे+एत्थ अम्हेत्थ (वयमत्र) जे इमेजेमे (ये इमे) जइ+अहंजइहं (यद्यहम् ) जइ+ इमा=जइमा (यदीयम्) जे+एत्थ=जेत्थ (ये अत्र) तुज्झे+इत्थ=तुभित्थ (यूयमत्र) (पिशल प्राकृत० पैरा ६२, १३५ के अनुसार)-स्वर से परे इव अव्यय हो तो इव का व्व हो जाता है। अनुस्वार से परे इव हो तो वही होता है, द्वित्व व (व्व) नहीं । स्वर+इव-स्वर- व्व चंदो+इव चंदोव्व (चन्द्र इव) धम्मो+इव =धम्मोव्व (धर्म इव) अनुस्वार+इव=अनुस्वार व गेहं+इव= गेहं व । धणं- इव=धणं व . पुतं+ इव=पुत्तं व । रिणं+इव=रिणं व । संस्कृत के अनुसार--उपसर्ग का अंतिम स्वर इवर्ण या उवर्ण हो आगे स्वर हो तो संधि हो जाती है । उसके बाद संयुक्त व्यंजन का नियमानुसार परिवर्तन हो जाता है। इवर्ण+असवर्ण स्वर=य्+असवर्ण स्वर अति +अन्तं-अत्यन्तं-अच्चन्तं अभि+आगओ=अभ्यागओ=अब्भागओ (अभ्यागतः) उवर्ण+असवर्ण स्वर व+असवर्ण स्वर अणु+एसइअण्वेसइ-अण्णे सइ (अन्वेषति) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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