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________________ परिशिष्ट ७ ५६५ गोनाम् (वै. प्र. ७१।५७) गोनं, गुन्नं युष्मे अस्मे १ (वै. प्र. ७।१।३६) तुम्हे अम्हे त्रीणाम् (वै. प्र. ७११५३) तिन्नं, तिण्हं नावया (वै. प्र. ७।१।३९) नावाय, नावाए इतरम् (वै. प्र. ७।१।२६) इतरं वाह+अन--वाहनः वाहणओ, वोल्लण्णआ. (कर्तासूचक अनप्रत्यय इत्यादि (वै. प्र. ३।२।६५,६६) (३३) अनुस्वार लोपवैदिक प्राकृत मांस-मास मांस-मास, मंस (११२८,२९) . (वैदिक ग्रामर कंडिका ८३-१) किं-कि, किं . ननं-नूण, नूणं - अनुस्वार का लोप विकल्प से हुआ है। (३४) भूतकाल में आदि अका अभाव प्राकृत अमथ्नात्-मथीत् मथी अरुजन्-रुजन् रुजीअ अभूत्-भूत् भवी (ऋ. वे. पृ. ४६४,४६५) (३५) इकारान्त शब्द के प्रथमा विभक्ति का बहुवचन-- प्राकृत अत्रिणः हरिणो (तृजन्तस्य अत्तृ शब्दस्य (प्रथमा बहुवचन)जस- छान्दसः इनुड् आगमः (ऋ. वे. पृ. ११३-५ सूत्र मेक्स०) (३६) कृ का तथा जि धातु का रूपवैदिक प्राकृत . ..... . कृणोति कुणति (हे. प्रा. व्या. ४१६५) जेन्यः जिणइ (हे. प्रा. व्या. ४।२४१) वैदिक वैदिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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