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________________ प्राकृत बाक्यरचना बोध (ऋग्वेद पृ. २२६, २२७ तथा पृ. ४६५) (३७) क-अकारान्त शब्द में लगने वाला प्रत्यय ईकारान्त में भी लगता या वैदिक प्राकृत नद्यैः नदीहि (हे. प्रा. व्या. ३।१२४) (वै. प्र.७।१।१० पाणिनीय प्राकृत में अकारान्त में लगने वाले काशिका) इस रूप में अकारान्त प्रत्यय ईकारान्त में भी लगते हैं। में लगने वाला प्रत्यय ईकारान्त में भी लगा है। ख-द्विवचन का रूप बहुवचन के समानवैदिक प्राकृत देवा प्राकृत भाषा में द्विवचन होता ही उमा नहीं है। द्विवचन के सब रूप बहुवचन वेनन्ता के समान होते हैं-द्विवचनस्य (ऋग्वेद पृ. १३६-६) बहुवचनम् (हेम. प्रा. व्या. ३११३०) मित्रावरुणा हत्था पाया दिविस्पृशा थणया अश्विना नयणा (वै. प्र. ७।१३६) (३८) विभक्ति रहित प्रयोग प्राकृत प्राकृत भाषा में भी अनेक प्रयोग लोहिते चर्मन् (अप्रयोग परमे व्योमन् ) गय--षष्ठी का बहुवचन वै. प्र. ७.५।३६ बहुशत-षष्ठी का बहुवचन वीणळु ) द्वितीया का . २६ इत्यादि दळहा अभिज्ञ अप्रयोग (ऋ. पृ. ४६४ तथा ४७२) (३६) समान अर्थयुक्त अव्ययवैदिक प्राकृत कुह (कुत्र) कुह (कुत्र) वैदिक आद्रे चर्मन् सप्तमी कारहित ही पाए जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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