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________________ १६ तवा - काहिल्लिआ (दे०) तमेली-सुफणी (दे०) चिमटा -- संदसो (सं) चमची - कडुच्छयो (दे०) डोयो, काष्ठ का हाथा — डोओ कुछ दव्वी हांडी इंडिआ, कंदू चुल्हा -- चुल्ली ढकना — पिहाणं छाज - चिल्लं (दे० ) ० शब्द संग्रह (रसोई उपकरण ) णीसारय - निकालना वट्ट - परोसना मुण जानना सयं (स्वयं) - स्वयं जत्थ ( यत्र ) -- जहां उद्वृत्त स्वर संधि परोसना - परीसणं, परिवेसणं अंगारा - इंगारी, अंगारो ० Jain Education International संडासी - संडासं, संडासो कडाही - कडाहो, कवल्लो कठौती- चुण्णमद्दणी (सं) प्याला, कटोरा -- कट्टोरगो (दे). थाली- थालि, थाली, थालं रसोईघर -- महाणसं रसोइया - पाचओ, सूदो चुल्हे का पिछला भाग — अवचुल्लो प्लेट - सरावो (सं) ० जा, जाव ( यावत् ) – जब तक पुलिंग एअ ( एतत् ), इम देसो- परिशिष्ट १ संख्या ४८, धातु संग्रह तरकारी -- तीमणं कलेवा - कल्लवत्तो, पायरासो विसमर - भूलना o उट्ठउठना पिसुण - चुगली करना अव्यय जहेव ( यथेव ) - जिस कार से ता, ताव ( तावत् ) तब तक जइ ( यदि ) - जो ( इबं), अमु ( अदस्) शब्द याद करो । ४७क, ४६ क । उवृत स्वर नियम ६ [ स्वरस्योत्ते ११८] स्वरसंयुक्त व्यंजन में व्यंजन का लोप होने पर जो स्वर शेष रहता है उसे उद्वृत्त स्वर कहते हैं । स्वर से आगे उद्वृत्त स्वर हो तो संधि नहीं होती । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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