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तवा - काहिल्लिआ (दे०) तमेली-सुफणी (दे०) चिमटा -- संदसो (सं) चमची - कडुच्छयो (दे०) डोयो, काष्ठ का हाथा — डोओ कुछ दव्वी
हांडी इंडिआ, कंदू
चुल्हा -- चुल्ली
ढकना — पिहाणं
छाज - चिल्लं (दे० )
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शब्द संग्रह (रसोई उपकरण )
णीसारय - निकालना वट्ट - परोसना
मुण जानना
सयं (स्वयं) - स्वयं जत्थ ( यत्र ) -- जहां
उद्वृत्त स्वर संधि
परोसना - परीसणं, परिवेसणं अंगारा - इंगारी, अंगारो
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संडासी - संडासं, संडासो कडाही - कडाहो, कवल्लो कठौती- चुण्णमद्दणी (सं) प्याला, कटोरा -- कट्टोरगो (दे). थाली- थालि, थाली, थालं रसोईघर -- महाणसं
रसोइया - पाचओ, सूदो चुल्हे का पिछला भाग — अवचुल्लो प्लेट - सरावो (सं)
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जा, जाव ( यावत् ) – जब तक पुलिंग एअ ( एतत् ), इम देसो- परिशिष्ट १ संख्या ४८,
धातु संग्रह
तरकारी -- तीमणं
कलेवा - कल्लवत्तो, पायरासो
विसमर - भूलना
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उट्ठउठना
पिसुण - चुगली करना
अव्यय
जहेव ( यथेव ) - जिस कार से ता, ताव ( तावत् ) तब तक जइ ( यदि ) - जो
( इबं), अमु ( अदस्) शब्द याद करो । ४७क, ४६ क ।
उवृत स्वर
नियम ६ [ स्वरस्योत्ते ११८] स्वरसंयुक्त व्यंजन में व्यंजन का लोप होने पर जो स्वर शेष रहता है उसे उद्वृत्त स्वर कहते हैं । स्वर से आगे उद्वृत्त स्वर हो तो संधि नहीं होती ।
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