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स्वर संधि
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ण + एवण्---एव--णेव (नैव)
देविद+अभिवंदिम-देविंदभिवंदिअ प्रयोग वाक्य
वेसवारस्स महत्तं को न जाणइ ? जीरयम्मि लोहांसो अहियो होइ । पडणपीडाए घएण सह हलद्दीए पओगो कीरइ। हिंग वाउणासणो अत्थि । लोणेण विणा तीमणस्स साओ न हवइ । आउव्वेयसत्थे गुणेणं मिरिअं उन्हअरं भवइ । महिला दालीए तेजपत्तं देइ । राइगाए संपुण्णा कढिआ महं बहु रोयइ। पिउसिआ थालि लू हइ । ससा घयं तावइ । अरिहंतो धम्म पन्नवइ। णोहा सुक्कं कटें झामइ । घरणी गोहूमं चुण्णइ । णवा सासु आढाइ । प्राकृत में अनुवाद करो
जीरा और नमक दोनों का योग उपयोगी है। लालमीर्च अधिक नहीं खानी चाहिए। हींग की गंध दूर तक जाती है। हल्दी का रंग हल्का होता है। राई बहुत छोटी होती है । तेजपत्ता दाल के स्वाद को बढाता है। गुण से बहू ससुर का आदर करती है । मौसी वस्त्र से बर्तन पोंछती है । सुशीला चावलों का चूर्ण करती है। माता लकडी जलाती है पर उसमें धुंआ निकलता है। आचार्य तत्त्व को प्रज्ञापित करते हैं । बुआ धनिया खरीदती है।
प्रश्न १. दहि और मधु शब्द के रूप लिखो। २. मसाला, धनिया, राई, मीर्च, हल्दी, जीरा, तेजपत्ता, हींग और लवण
शब्दों के प्राकृत शब्द बताओ। ३ लूह, ताव, चुण्ण, झाम, किण, धर, पन्नव और आढा धातुओं के अर्थ
बताओ। ४ आहच्च, उच्चअ, काहे अव्ययों को वाक्य में प्रयोग करो। ५. संधि करो-कंखा-+-अभावो, इंदिय-- उवओगो, धम्म--- इंदो,
धण-+ ईसरो, सीया+ईसो, पीला-- ओहो, बालो+अहियासए । . ६. संधिविच्छेद करो---जीवाजीवा, भाणू अयं, निसेसो, गइंदो, • मट्टिओलित्तं, जलोहो, गुणुज्जलं, रयणोवायो, सीओदगं ।
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