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प्राकृत वाक्यरचना बोष
(पिशल प्राकृत परा १५०) अवर्ण । इवर्ण (संयुक्त व्यंजन के पूर्व) इ (संयोग परे होने से ह्रस्व) देवेन्द्रः-देव । इंदो-देविंदो नरेन्द्रः-पर-इंदो-रिंदो अवर्ण-उवर्ण (असंयुक्त व्यंजन के पूर्व) =ओ गूढोदरम्----गूढ+उअरंगूढोअरं एकोनं-एग+ऊणं-एगोणं गंगोपरि-----गंगा+उवरि-गंगोवरि अवर्ण+उवर्ण (संयुक्त से पूर्व) उ (ओ होने के बाद संयुक्त परे होने से उ होता है) कर्णोत्पलम्-कण्ण+उप्पलं-कण्णुप्पलं रत्लोज्ज्वलम्-रयण+उज्जलं रयणुज्जलं
(पिशल प्राकृत० परा १५३) अवर्ण+एए गाम+एणी-गामेणी (देशीशब्दः) तथैव-तहा---एअ-तहेअ अवर्ण+ ओ ओ गुणौद्य:-गुण+ओहो-गुणोहो मृत्तिकावलिप्तम्-मट्टिआ+ओलित्तं मट्टिओलित्तं
संस्कृत के आधार पर पूर्वपद के अन्त में स्वर हो और दूसरे पद के आदि में स्वर हो ता वहां कहीं-कहीं अगले पद के पहले स्वर का लोप हो जाता है। फासे+अहियासए फासे हियासए बालो- अवरज्झइ बालो वरज्झइ एस्संति+अणंतसो-एस्संति णंतसो
नियम ५ (लुक् १११०)-स्वर से परे स्वर होने पर पूर्व स्वर का प्रायः लोप हो जाता है।
तिदस--ईसो- तिदस् ।- ईसो तिदसीसो, तिदसेसो (त्रिदशेशः) नीसास+ ऊसासो-नीसास्+ ऊसासो- नीसासूसासो (निश्वासोच्छवासः) नर+ईसरो नर+ईसरोनरीसरो, नरेसरो (नरेश्वरः) गच्छामि+अहं-- गच्छम् + अहं गच्छामहं (गच्छाम्यहम्) तम्मि+अंसहरो-तम्मंसहरो
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