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________________ ३४ प्राकृत वाक्यरचना बोध आधार कहते है । जैसे—दूध में घी है। तिलों में तेल है । (४) वैषयिक --- जिससे विषय ( निवास करने के उसे वैषयिक आधार कहते हैं । अरण्य में सिंह गर्जता है । तप करता है । (५) नैमित्तिक -- जिस शब्द से होने वाले कार्य के निमित्त की सूचना मिलती है उसे नैमित्तिक आधार कहते हैं । जैसे - वह युद्ध के लिए तैयार होता है। क्षेत्र) का बोध हो तपोवन में तपस्वी (६) औपचारिक — उपचार यानि संकेत को मानकर जो कहा जाता है उसे औपचारिक आधार कहते हैं । जैसे - वृक्ष पर बिजली चमक रही है । अंगुली की नोक पर चन्द्रमा है । आधार में सप्तमी विभक्ति होती है । (क) एक प्रसिद्ध क्रिया से दूसरी अप्रसिद्ध क्रिया का काल जाना जाए तो पहली क्रिया में सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे—सूर्यास्त के समय वह घर आया । ( ख ) अनादर भाव से किसी की उपेक्षा कर क्रिया करने पर अनादर भाव वाले में सप्तमी विभक्त होती है । जैसे- रोती हुई माता को छोड पुत्र दीक्षित हो गया । (ग) सामी, ईसर, अहिवइ, दायाद, साखी, पडिहू और पसूअ --- इन शब्दों के योग में षष्ठी और सप्तमी विभक्ति विकल्प से होती है । (घ) निर्धारण - समुदाय में से एक की किसी विशेषण के द्वारा विशिष्टता दिखाई जाए तो समुदायवाची शब्द में सप्तमी विभक्ति विकल्प से होती है । Jain Education International प्रयोग वाक्य जो संसारे आसत्तोऽत्थि सो मूढो । संसारम्मि रागा दोसा य अादिकालाओ संति । मेहा सव्वत्थ परिओ वरिसंति । रामस्स गिहं आवणे ( बाजार में ) अत्थि । ते गिरिम्मि कत्थ णिवसंति । सरस्सईए गिहे अग्गी पज्जलइ | वाउम्मि गमणं संहवं नत्थि । छिहंडओ सुमेरस्स रोअइ । अहं पइदिणं दुद्ध' पिबामि । रिसहो धयं वा अज्जं वा न अहिलसइ । नवणीयं अलिआरेण जाअइ । तक्कं भोयणेण सद्धि हिमअरं हवइ । मज्भण्हस्स पच्छा दह न भोक्तव्वं किं अ कफकारअं होइ । घोलं सीअलं भवइ । जो दहि खाअइ सो खासइ । मज्झ करघायलो रोयइ । मए अज्ज दहित्थारो भुत्तो । अहं संभा भोणे कढि भुंजामि । मेवाडदेसे जणा अंबेल्लि खाअंति । सुद्धो अणरिक्को दुल्हो अत्थि । fearsो गिरिट्ठो भवइ । दाहिअं रुइकरं भवइ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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