________________
१
आधार
शब्द संग्रह (गोरस वर्ग) दूध -खीरं, पयो, दुद्ध, अलिआरं (दे०) दही-दहिं (न) घी-घयं, सप्पि, अज्जं
नवनीत–णवणीयं, दहिउफ (दे०) खीर-पायसो
मट्ठा-घोलं (दे०) मावा, खोआ--किलाडो, कृचिआ । छाछ-तक्कं दही की मलाई-दहित्थारो (दे०) दूध की मलाई--करघायलो(३०) कढी-कढिआ (दे०) तीमणं
खट्ठीराब-अंबेली (दे०) रायता-दाहिसं (सं)
श्रीखंड-छिहंडओ (दे०) संभव-संहवं
आजकल-अज्जत्ता
धातु संग्रह पज्जल-जलाना
णिवस--निवास करना, रहना उवदंस--दिखाना, पास जाकर बताना कील-क्रीडा करना, खेलना खास-खांसना
अहिलस-इच्छा करना
अव्यय संग्रह एत्थ (अत्र) यहाँ
कओ (कुतः) कहों से अहवा, अहव (अथवा) या, अथवा असई (असकृत्) अनेक बार कहिआ कहिं कहि (क्व, कुत्र) कहां, किस स्थान में । अहे (अधस्) नीचे
नपुंसक लिंग अकारान्त वण शब्द को याद करो। देखो-परिशिष्ट १ संख्या ३०।
आधारजिसमें क्रिया हो रही है उसे आधार कहते हैं। वह छह प्रकार का है
(१) औपश्लेषिक-जिस आधार से संलग्न पदार्थ का बोध हो उस आधार को औपश्लेषिक कहते हैं। जैसे—वह चटाइ पर सोता है। धर्मेन्द्र वृक्ष पर बैठता है। सोने वाला चटाई से और बैठने वाला वृक्ष से संलग्न है।
(२) सामीप्यक-जिससे समीपता का बोध हो, उसे सामीप्य आधार कहते हैं । जैसे—गायें बरगद के नीचे खडी हैं। अशोक वृक्ष के नीचे सीता बैठी है।
(३) अभिव्यापक-व्याप्य का बोध कराने वाले शब्द को अभिव्याप्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org