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प्राकृत वाक्यरचना बोध (झलक्किअइ) अनुगच्छति (अब्भडइ)। शल्यायते (खुडुक्कइ) । गर्जति (घुडुक्कइ) । तिष्ठति (थति)। आक्रम्यते (चम्पिज्जइ)। शब्दायते (धुठ्ठअइ)। कृदन्त प्रत्यय
नियम ११०५ (तव्यस्य इएव्वउं एव्वउं एवा ४१४३८) अपभ्रंश में तव्य प्रत्यय को इएव्वउ, एव्वउ, एवा-ये तीन आदेश होते हैं। कर्तव्यम् (करिएव्वउ)। सोढव्यम् (सहेव्वउं) । स्वपितव्यम् (सोएवा)।
नियम ११०६ (क्त्व-इ-इउ-इवि-अवयः ४१४३६) अपभ्रंश में क्त्वा प्रत्यय को इ, इउ, इवि, अवि-ये चार आदेश होते हैं। मारयित्वा (मारि, मारिउ, मारिवि, मारवि)।
नियम ११०७ (एप्प्येप्पिग्वेव्यविणवः ४।४४०) अपभ्रंश में क्त्वा प्रत्यय को एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु-ये चार आदेश होते हैं। पूर्व सूत्र से इस सूत्र को अलग करने का कारण है, इन चार प्रत्ययों को अगले सूत्र में भी लेना है । जित्वा (जेप्पि, जेप्पिणु, जेवि, जेविणु)।
नियम ११०८ (तुम एवमणाणहमहिं च ४१४४१) अपभ्रंश में तुम् प्रत्यय को एवं, अण, अणहं, अणहि-ये चार आदेश होते है। च शब्द से एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु-ये चार और आदेश होते हैं। दातुम् (देवं)। कर्तुम् (करण, करह, करणहिं) । जेतुम् (जेप्पि) । त्यक्तुम् (चएप्पिणु) । लातुम् (लेविणु)। पालयितुम् (पालेवि)।
नियम ११०६ (गमेरेप्पिण्वेप्प्योरेलुंग वा ४।४४२) अपभ्रंश में गम् धातु से परे एप्पिण, एप्पि हो तो इनके एकार का लुक विकल्प से होता है। गत्वा (गम्प्पिणु, गम्पि) । पक्ष में-गमेप्पिणु, गमेप्पि ।
नियम १११० (तृनोऽणअः ४१४४३) अपभ्रंश में तृन् प्रत्यय को अणअ आदेश होता है । कथयिता (बोलणउ)।
नियम ११११ (लिंगमतन्त्रम् ४१४४५) अपभ्रंश में लिंग का नियम निश्चित नहीं है।
(१) गय कुम्भई दारन्तु । (२) अब्भा लग्गा डुङ्गरिहिं ।
(३) पाइ विलग्गी अन्त्रडी। (४) डालई मोडन्ति । (१) कुम्भ शब्द पुंलिंग है, परन्तु यहां नपुंसकलिंग में हैं। (२) अब्भ शब्द नपुंसकलिंग है, यहां पुंलिंग में है। (३) अंत शब्द नपुंसक है, यहां स्त्रीलिंग में है।
(४) डाली शब्द स्त्रीलिंग है, यहां नपुंसकलिंग में है।
नियम १११२ (शेषं शौरसेनी वत् ४।४४६) अपभ्रंश में प्रायः शौरसेनी के समान कार्य होता है। इति अपभ्रंश ।।
नियम १११३ (व्यत्ययश्च ४१४४७) प्राकृत आदि भाषाओं में
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