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अपभ्रंश (६)
कुर्वन्ति ( करहिं करन्ति ) ।
नियम १०२ ( मध्य त्रयस्याद्यस्य हि : ४।३८३ ) अपभ्रंश में त्यादि के मध्यत्रिक के एकवचन को हि आदेश विकल्प से होता है । करोषि ( करहि करसि ) ।
नियम १०९३ ( बहुत्वे हु: ४ | ३८४ ) अपभ्रंश में त्यादि के मध्यत्रय के बहुवचन को हु आदेश विकल्प से होता है । कुरुथ ( करहु, करहे ) ।
नियम १०६४ ( अन्त्यत्रयस्याद्यस्य उं ४१३८५ ) अपभ्रंश में त्यादि के अन्त्यत्रय के एकवचन को उ आदेश विकल्प से होता है । करउ । पक्षे करोमि (करेमि ) |
नियम १०६५ ( बहुत्वे हुं ४ | ३८६ ) अपभ्रंश में त्यादि के अन्त्य त्रय के बहुवचन को हुं आदेश विकल्प से होता है । कुर्मः ( करहुं ) । पक्षे करिमु ।
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नियम १०६६ ( हि स्वयोरिवेत् ४ १३८७) अपभ्रंश में तुबादि के हि और स्व को इ, उ और ए- ये तीन आदेश होते हैं । कुरु (करि, करु, करे ) । पक्षे करहि ।
नियम १०६७ ( वत्स्यति स्वस्य सः अर्थविषयक त्यादि के स्य को स विकल्प से पक्षे काहि ।
नियम १०९८ ( कियेः कीस ४।३८६ ) अपभ्रंश में क्रिये इस क्रियापद को कीसु आदेश विकल्प से होता है । क्रिये (कीसु) । पक्ष में ( किज्जउ ) । क्रिये यह संस्कृत का सिद्ध रूप है ।
नियम १०९६ ( भुवः पर्याप्तो, हुच्चः ४ ३६० ) अपभ्रंश में भू धातु पर्याप्त अर्थ में हो तो उसे हुच्च आदेश होता है । प्रभवति ( पहुच्चइ ) समर्थ है।
नियम ११०१ ( व्रजे
वुन आदेश होता है । व्रजति
४ | ३८८ ) अपभ्रंश में भविष्य होता है । करिष्यति ( कासइ) ।
नियम ११०० (ब्रूगो ब्रुवो वा ४ | ३६१ ) अपभ्रंश में ब्रू धातु को ब्रुव आदेश विकल्प से होता है । ब्रवीति ( ब्रुवइ ) । पक्षे ब्रोइ । : ४ । ३६२ ) अपभ्रंश में व्रजति के व्रज् को ( वुबइ ) | नियम ११०२ ( दृशे: प्रस्सः ४।३६३ ) अपभ्रंश में दृश् धातु को प्रस्स आदेश होता है । पश्यति ( प्रस्सदि ) |
नियम ११०३ ( हे गृहः ४ ३९४ ) अपभ्रंश में ग्रह, धातु को गृह आदेश होता है । गृह्णाति (गृहइ ) ।
नियम ११०४ ( तक्ष्यादीनां छोल्लादयः ४ ३६५ ) अपभ्रंश में तक्ष आदि धातुओं को छोल्ल आदि आदेश होते हैं । तक्षति ( छोलिज्जइ ) । आदि शब्द से देशी धातु के जो क्रियापद मिलते हैं उनके उदाहरण - दहइ
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