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________________ अपभ्रंश ( ५ ) ( बलुल्लडउ ) । नियम १०७७ ( युष्मदादेरीयस्य डार: ४१४३४ ) अपभ्रंश में युष्मद् आदि शब्दों से परे ईय प्रत्यय को डार आदेश होता है । युष्मदीयम् ( तुहारउ ) अस्मादीयम् (अम्हारउ ) । नियम १०७८ ( अतो तुलः ४१४३५ ) अपभ्रंश में इदं कि, यत्, तत् एतद् शब्दों से परे अतु प्रत्यय को डेत्तुल आदेश होता है । इयत् ( एतुलो ) । कियत् ( केतुलो ) । यावत् ( जेत्तुलो ) । तावत् (तेत्तुलो ) । एतावत् ( एतुलो) । नियम १०७६ ( त्रस्य डेत हे ४/४३६ ) अपभ्रंश में सर्व आदि शब्द सप्तम्यन्त हो, उस अर्थ में होने वाले त्र प्रत्यय को डेत्तहे आदेश होता है । अत्र ( एत्तहे ) । तत्र ( तेत्त हे ) । नियम १०८० ( त्वतलो: प्यणः ४१४३७ ) अपभ्रंश में त्व और तल् प्रत्यय को पण आदेश होता है । बहुत्वं, बहुता ( बहुप्पणु) । वृद्धत्वं वृद्धता ( वडुप्पणु) । नियम १०८१ ( कथं यथा तथां थादेरेमे मेहेधा डितः ४/४० १ ) अपभ्रंश में कथं, यथा, तथा शब्द के थ से अगले वर्ण तक डेम, डिम, डिह और fisa आदेश होता है । कथं (केवं, किवं, किह, किध, केम, किम) । यथा ( जेवं, जिवं, जेम, जिम, जिह, जिध) । तथा ( तेवं, तिवं, तेम, तिम, तिह, तिध ) । नियम ६६६ से म को (वं) विकल्प से हुआ है । नियम १०८२ ( यादृक्-तावृक् कीदृशीदृशां दावेर्डेहः अपभ्रंश में यादृक्, तादृक् कीदृक् और ईदृक् शब्दों के दृ से डेह आदेश होता है । यादृक् ( जेहु) । तादृक् (तेहु) ईदृक् (हु) । । Jain Education International ४४१ नियम १०८३ ( अतां इसः ४१४०३ ) अपभ्रंश में यादृक् तादृक्, कीदृक्, ईदृक्--- इन अदन्त शब्दों के द से आगे के वर्णों को डइस आदेश होता है । यादृश: ( जइसो) । तादृश: ( तइसो) । कीदृश: ( कइसो) । ईदृश: ( अइसो) । नियम १०८४ ( यत्र-तत्रयोस्त्रस्य द्विदेस्थ्यतु ४४०४) अपभ्रंश में यत्र और तत्र शब्द के त्र को डेत्थु और डत्तु आदेश होते हैं । यत्र (जेत्थु, जत्तु ) । तत्र (तेत्थु तत्तु ) । नियम १०८५ ( एत्थु कुत्रात्रे ४/४०५) अपभ्रंश में कुत्र और अत्र के त्रको डेत्थ आदेश होता है । कुत्र ( केत्थु ) । अत्र ( एत्थु ) । नियम १०८६ ( यावत् तावतोर्वावेमं उं महि ४।४०६ ) अपभ्रंश में तावत् के वत् को म, उ और महि आदेश होता है । यावत् (जाम, जाउ, जामहिं ) । तावत् (ताम, ताउ, ताम ह्) । यावत् और For Private & Personal Use Only ४१४०२) आगे के वर्णों को कीदृक् (केहु) 1 www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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