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________________ ११७ अपनश (५) शब्द संग्रह कइ()--कवि दहि (न)-दही वत्थु (न)-पदार्थ साहु (पुं)-साधु आंखि (स्त्री)--आंख भत्ति (स्त्री)-भक्ति गुरु (पुं)-गुरु गव्व (पुं)- गर्व माया (स्त्री)-माता बिन्दु (पुं)-बूंद पुत्ती (स्त्री)-पुत्री सामि (पुं)-स्वामी जंतु (पुं)-प्राणी दिवायर (पुं)-सूर्य धातु संग्रह दा-देना सुण-सुनना भुल-भूलना मग्ग-मांगना गवेस-खोज करना वण्ण-- वर्णन करना सेव-सेवा करना गरह-निंदा करना कह-कहना कर-करना मार-मारना सुमर-स्मरण करना जेम-जीमना चोर-चुराना गच्छ-जाना थुण-स्तुति करना सीख-सीखना • अम्ह और तुम्ह शब्द तथा संख्यावाची शब्दों को याद करो। देखो परिशिष्ट ३ संख्या २३,२४,२६ से ३५। तद्धित नियम १०७२ (पुनविनः स्वार्थे डुः ४१४२६) अपभ्रंश में पुनर् और बिना को स्वार्थ में डु प्रत्यय होता है । पुनः (पुणु)। बिना (विणु)। नियम १०७३ (अवश्यमो डें-डो ४।४२७) अपभ्रंश में अवश्यम् को स्वार्थ में डें और ड-ये प्रत्यय होते हैं । अवश्यम् (अवसें, अवस)। नियम १०७४ (एकशसो डि: ४।४२८) अपभ्रंश में एकशस् शब्द से स्वार्थ में डि प्रत्यय होता है। एकशः (एक्कसि)। नियम १०७५ (अ-डड-डुल्लाः स्वाथिक-क-लुक् च ४।४२६) अपभ्रंश में नाम से परे स्वार्थ में अ, डड, डुल्ल-ये तीन प्रत्यय होते हैं, इनके योग में स्वार्थ में हुए क प्रत्यय का लोप हो जाता है। अग्निष्ठः (अग्गिढउ) । दोषा (दोसडा)। कुटी (कुडुल्ली)। नियम १०७६ (योगजाश्चषाम् ४१४३०) अपभ्रंश में अ, डड, डुल्ल और इनके योग से बनाने वाले डडअ आदि प्रत्यय प्रायः स्वार्थ में होते हैं । हृदयम् (हिअड)। चूटकः (चुडुल्लउ) । बलम् (बलुल्लडा)। बलम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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