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अपभ्रंश (३)
४३३ मणोरह-ठाणु।
नियम १०४० (एइर्जस्-शसोः ४१३६३) अपभ्रंश में एतत् शब्द को एइ आदेश होता है, जस् और शम् परे हो तो। एते चोटका: (एइ घोडा) एतान् पश्य (एइ पेच्छ)।
नियम १०४१ (किम काई-कवणी वा ४।३६७) अपभ्रंश में कि शब्द को काई और कवण आदेश विकल्प से होता है । किम् (काई, कवणु, किं)।
नियम १०४२ (किमो डिहे वा ४१३५६) अपभ्रंश में किं शब्द के अकारान्त से परे ङसि को डाहे आदेश विकल्प से होता है । कस्मात् (किहे)। मुनिः (मुणी)।
नियम १०४३ (एं चेदुतः ४॥३४३) अपभ्रंश में इकार और उकार से परे टा को एं, ण और अनुस्वार होता है। मुनिना (मुणिएं, मुणिण, मुणि) । मुनिभिः (मुणिहिं)।
नियम १०४४ (सि-भ्यस्-डीनां हे-हं-हयः ४१३४१) अपभ्रंश में इकार और उकार से परे ङसि, भ्यस् और ङि को क्रमशः हे, हुं और हि-ये तीन आदेश होते हैं। मुनेः (मुणिहे) । मुनिभ्यः (मुणिहुं) । मुनौ (मुणिहि) मुनेः (मणि) षष्ठी में विभक्ति का लुक हुआ है।
नियम १०४५ (हुंचेदुभ्याम् ४।३४०) अपभ्रंश में इकार और उकार से परे आम् को हुं, हं आदेश होते हैं। मुनीनाम् (मुणिहुं, मुणिहं) इसी प्रकार उकारान्त शब्द के भी रूप बनते हैं। प्रायो अधिकार से कहीं पर सुप् प्रत्यय को भी हुं आदेश होता है । द्वयोः (दुई)। स्त्रीलिंग
नियम १०४६ (स्त्रियां जस्-शसोरवोत् ४।३४८) अपभ्रंश में स्त्रीलिंग में नाम से परे जस् और शस् हो तो प्रत्येक को उ और ओ आदेश होते हैं। मालाः (मालाउ, मालाओ)। माला: (मालाउ, मालाओ)।
नियम १०४७ (ट ए ४१३४६) अपभ्रंश में स्त्रीलिंग में नाम से परे टा को ए आदेश होता है । मालया (मालाए) । मालाभिः (मालाहिं)।
नियम १०४८ (ङस्-इस्यो है ४।३५०) अपभ्रंश में स्त्रीलिंग में वर्तमान नाम से परे ङस् और ङसि हो तो उनको हे आदेश होता है । मालायाः, मालायाः (मालाहे)।
नियम १०४६ (भ्यसामोईः ४१३५१) अपभ्रंश में स्त्रीलिंग में वर्तमान नाम से परे भ्यस् और आम् प्रत्यय हो तो प्रत्ययों को हु आदेश होता है। मालाभ्यः, मालानाम् (मालाह)।
नियम १०५० (केहि ४१३५२) अपभ्रंश में स्त्रीलिंग में वर्तमान
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