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________________ प्राकृत वाक्यरचना बोष कोई आवश्यकता नहीं होती, केवल बुद्धि से ही अलगाव होता है । जैसे-राम शत्रुओं से डरता है । मोहन धर्म से प्रमाद करता है। इन दो वाक्यों में शत्रुओं और धर्म से विभाग होता है, उसमें पंचमी विभक्ति होती है। पूर्व के पाठों में कारकों के चिह्न बतलाए गए हैं, उनमें साधन और अपादान का एक ही चिह्न है--से । फिर भी दोनों का अन्तर स्पष्ट ज्ञात होता है । पंचमी विभक्ति १. दुगुञ्छा, विराम और पमाय तथा इनके समानार्थक शब्दों के योग में पंचमी विभक्ति होती है। २. जिससे डरता हो उसमें पंचमी विभक्ति होती है। ३. परा पूर्वक जय (जि) धातु के योग में जिससे हारता है उसकी अपादान संज्ञा होती है और उसमें पंचमी विभक्ति होती है। ४. जिससे उत्पन्न होता है या निकलता है उसमें पंचमी विभक्ति होत है। प्रयोग वाक्य पुत्तो पिउं पणमइ पगे। भाइणेज्जो दुद्ध पिवइ । नत्तुणिया घरे खेलइ। माउलो भाइणेयेण सह किं चिंतइ ? बप्पो गिहस्स सामी अस्थि । अज्जओ अहुणा संसारे नत्थि । पज्जओ पूअणीओ अत्थि सव्वाणं गिहवासिणं । पई णिसाए न भुजइ । नत्तुणियो विणेयो सुसीलो य अस्थि । भाइणेज्जा लेहं लिहइ । पपोत्ती गिहागंणे खेलइ। धूया अहुणा अकंडतलिमा अत्थि । भाइणेया अत्थयारिआए समीवत्तो पोत्थयं नेति । रामो पिउणो धणं गेण्हइ । सो कुसुमत्तो धणं मग्गइ । तुम गिरिणो पडित्था । सो पव्वयत्तो पाइणा नेति । विभक्ति का प्रयोग १. सो सज्झायत्तो पमायइ । सोहणो भासणत्तो विरमइ । साहू पावत्तो दुगुञ्छ।। २. कमला कलहत्तो बीहइ । गुणसिरी सप्पाओ बीहइ । गिहे सप्पा ओ भयं णत्थि । ३. लोअणाहो अज्झयणत्तो पराजयइ ।। ४. कामत्तो कोहो अहिजाअइ। संकप्पत्तो कामो अहिजायइ । हिमवत्तो गंगा पवहइ। मव्यय का प्रयोग - अहं पगे आयरियं पणमामि । अहुणा अत्थ को वि साहू नत्थि । सो अपरज्जु न आगमिहिइ । आहाकडां भिक्खां साहू न गेण्हइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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