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प्राकृत वाक्य रचना बोध
(गरु) । ख को घ-सुखेन (सुधि)। त और थ को द और ध-कथितं (कधिदु)। प को ब-शपथं (सबधु)। फ को भ-सफलं (सभलउं)। ये शब्द श्लोकों के अन्तर्गत हैं, इसलिए आदि में नहीं है।
नियम ६६६ (मोनुनासिको वो वा ४।३६७) अपभ्रंश में अनादि असंयुक्त वर्तमान म को अनुनासिक व (व) विकल्प से होता है। कमलं (केवलु, कमलु)। संयुक्त वर्णपरिवर्तन
नियम ९९७ (वाधो रो लुक ४१३६८) अपभ्रंश में संयुक्त वर्ण में र अधः (दूसरा) हो तो उसका लोप विकल्प से होता है। प्रियः (पिउ, प्रिय)।
नियम ९६८ (म्हो म्भो वा ४।४१२) अपभ्रंश में म्ह को म्भ विकल्प से होता है। ग्रीष्मः (गिम्भो) । म्ह शब्द संस्कृत में नहीं है। प्राकृत में (पक्षम-श्म-ज्म-स्म-ह्मां म्हः २०७४) से म्ह आदेश होता है। उसी का यहां ग्रहण है।
नियम EEE (आपद्-विपत्-संपदां द इः ४।४००) अपभ्रंश में आपद्, विपद् और संपद् के द् को इ होता है। आपद् (आवइ) । विपद् (विवइ) । संपद् (संपइ)। आगम
नियम १००० (अभूतोपि क्वचित् ४।३६६) अपभ्रंश में कहीं पर न होने पर भी र हो जाता है । व्यासो महर्षिः (वासु महारिसी)।
नियम १००१ (परस्परस्यादि रः ४।४०६) अपभ्रंश में परस्पर शब्द के आदि में अकार हो जाता है । परस्परम् (अवरोप्पर)। आदेश
नियम १००२ (स्वाराणां स्वराः प्रायोपभ्रंशे ४१३२६) अपभ्रंश में स्वरों के स्थान पर प्रायः स्वर होते हैं । क्वचित् (कच्चु, काच्च)। वीणा (वेण, वीण)। बाहु (बाह, बाहा, बाहु) । पृष्ठम् (पट्टि, पिट्टि, पुट्ठि) । तृणः तणु, तिणु, तुणु) । प्रायः शब्द का अर्थ है-अपभ्रंश के नियमों से कहे जाते हैं उनका भी कहीं प्राकृत की तरह और कहीं शौरसेनी की तरह कार्य होता है।
___ नियम १००३ (अन्यादशोऽन्नाइसावराइसौ ४१४१३) अपभ्रंश में अन्यादृश शब्द को अन्नाइस और अवराइस दो आदेश होते हैं। अन्यादृशः (अन्नाइसो, अवराइसो)। १ नियम १००४ (प्रायसः प्राउ-प्राइव-प्राइम्ब-पग्गिम्वाः ४।४१४) अपभ्रंश में प्रायस् शब्द को प्राउ, प्राइव, प्राइम्व, पंग्गिम्ब-ये चार आदेश
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