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________________ ११३ अपभ्रंश (१) शब्द संग्रह अम्हे, अम्हइं-- हम दोनों/हम सब तुहुं-तू, तुम तुम्हे, तुम्हई-तुम दोनों/तुम सब सो-वह ते-वे दोनों/वे सब सा-वह (स्त्री) ता-वे दोनों/वे सब (स्त्री) ज-जो (पुं) क(पुं, नपुं)-कोन जा-जो (स्त्री) का (स्त्री)-कौन कवणा (स्त्री)-कौन . कवण (पुं, नं) कौन धातु संग्रह वइट्ट-बैठना रूस-रूसना सय-सोना णच्च-नाचना जग्ग-जागना पहा.--स्नान करना लुक्क-छिपना हरिस-प्रसन्न होना जीव-जीना हस---हसना • जिण और मुणि शब्द याद करो। वेखो-परिशिष्ट ३ संख्या १,२ गामणी, साहु और सयंभू शब्द के रूप मुणि शब्द की तरह चलते हैं । देखो-परिशिष्ट ३ संख्या ३,४,५।। ० हस पातु और हो धातु के वर्तमान काल के रूप याद करो। देखो परिशिष्ट ४ संख्या १,२। अपभ्रंश - १. अपभ्रंश में चार प्रकार के ही शब्द मिलते हैं--(१) अकारान्त (२) आकारान्त (३) इकारान्त (४) उकारान्त । २. अपभ्रंश में चार प्रकार के कालवर्णित हैं- (१) वर्तमानकाल (२) विधि एवं आज्ञा (३) भूतकाल (४) भविष्यकाल । सरल व्यंजन परिवर्तन नियम ६६५ (अनादौ स्वरावसंयुक्तानां क-ख-त-य-प-फां ग-ध-द-धब-मा: ४।३६६) अपभ्रंश में पद की अनादि में क, ख, त, थ, प, फ हों तो उनको क्रमशः म, घ, द, ध, ब और भ आदेश होते हैं। क को ग-करं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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