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अपभ्रंश (१)...
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होते हैं। प्रायस् (प्राउ, प्राइव, पाइम्व, पग्गिम्व) ।
नियम १००५ (वान्य थोनुः ४१४१५) अपभ्रंश में अन्यथा शब्द को अनु आदेश विकल्प से होता है । अन्यथा (अनु, अन्नह)।
नियम १००६ (कुतसः कउ-कहन्ति हु ४१४१६) अपभ्रंश में कुतस् शब्द को कउ और कहन्तिहु ये दो आदेश होते हैं। कुतः (कउ, कहन्तिहु)।
नियम १००७ (ततस्तदो स्तोः ४।४१७) अपभ्रंश में ततः (तस्मात् ) और तदा शब्दों को तो आदेश होता है। तत: (तो) । तदा । (तो)।
नियम १००८ (एवं-परं-सम-ध्रुवं-मा-मनाक-एम्व पर समाणु ध्रुव मं मणा ४१४१८) अपभ्रंश में एवं, परं, सम, ध्रुवं, मा और मनाक् शब्दों को क्रमश: एम्व, पर, समाणु ध्रुवु, मं और मणाउं आदेश होते हैं । एवं (एम्व)। परं (पर)। समं (समाणु) । ध्रुवं (ध्रुवु)। मा (मं)। मनाक् (मणाउं)।
नियम १००६ (किलाथवा-दिव-सह-नहेः किराहवइ दिवे सहं नाहि ४१४१६) अपभ्रंश में किल आदि शब्दों को क्रमश: किर आदि आदेश होते हैं। किल (किर) । अथवा (अहवइ) । दिवा (दिवं)। सह (सहुं)। नहि (नाहि)।
नियम १०१० (पश्चादेवमेवैवेदानी-प्रत्युतेतसः पच्छइ-एम्वइ-जि-एम्वहिं पच्चलिउ-एत्तेह ४।४२०) अपभ्रंश में पश्चात् आदि शब्दों को पच्छइ आदि आदेश होते हैं । पश्चाद् (पच्छइ)। एवमेव (एम्वइ) । एव (जि) । इदानीम् (एम्वहिं) । प्रत्युत (पच्चलिउ)। इतः (एत्तहे)।
नियम १०११ (विषण्णोक्त-वमनो वन्न-वृत्त-विच्चं ४।४२१) अपभ्रंश में विषण्ण आदि को वुन्न आदि आदेश होते हैं। विषण्णः (वुन्नउ) । उक्तः (वुत्तउ)। वर्त्म (विच्चउ)।
नियम १०१२ (शीघ्रादीनां बहिल्लादयः ४।४२२) शीघ्र आदि शब्दों को बहिल्ल आदि आदेश होते हैं । शीघ्रम् (वहिल्लउ)। झकट: (घंधलु) । अस्पृश्य संसर्गः (विट्टालु)। भयः (द्रवक्कउ)। आत्मीय: (अप्पणउ)। नव (नवखु)। दृष्टिः (द्रहि)। गाढ: (निच्च१) । साधारणः (सड्ढलु) । कौतुक: (कोड्डु) । क्रीडा (खेड्डु) । रम्यः (रवण्णु) । अद्भुतम् (ढक्करि)। हे सखि (हेल्लि) । पृथक पृथक् (जुअंजुअ) । मूढः (नालिउ) । मूढः (वढउ)। अवस्कन्दः (दडवडउ)। यदि (छुड्डु)। सम्बन्धी (केरउ) । सम्बन्धी (तणु) । माभैषीः (मब्भीसडी)। यद् यद् दृष्टम् (जाइट्ठिआ)।
नियम १०१३ (इवार्थे नं-नउ-नाइ-नावइ-जणि-जणव: ४।४४४) इव के अर्थ में नं आदि छ आदेश होते हैं। इव (नं, नउ, नाइ, नावइ, जणि,
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