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प्राकृत वाक्यरचना बोध
धातु रूप
नियम ६६५ (वजो जः ४।२६४) मागधी में व्रज् के ज् को ब होता है । व्रजति (वअदि)।
नियम ६६६ (तिष्ठ श्चिष्ठः ४।२९८) मागधी में स्था धातु के तिष्ठ को चिष्ठ आदेश होता है । तिष्ठति (चिष्ठदि)।
नियम ६६७ (स्कः प्रेक्षाचक्षोः ४।२६७) मागधी में प्रेक्षा और आचक्ष के क्ष को स्क होता है । प्रेक्षते (पेस्कदि)। आचक्षते (आचस्कदि)। कृदन्त प्रत्यय
[क्त्वोदाणिः ११।१६ वररुचि क्त्वा प्रत्यय के स्थान पर दाणि आदेश होता है । सोढ्वा गतः (शहिदाणि गडे) । कृत्वा आगतः (करिदाणि आअडे)।
[तान्तादुश्च ११११ वररुचि] क्त प्रत्ययान्त शब्द से परे सि को उ होता है । हसितः (हशिदु, हशिदे) ।
[कृञ् मृङ् गमां क्तस्य डः ११११५ वररुचि] डुकृन् करणे, मृ और गम् धातु से परे क्त को ड होता है। कृतः (कडे) । मृतः (मडे) । गतः (गडे) ।
नियम ६६८ (शेषं शौरसेनी वत् ४।३०२) शेष नियम प्राकृत शौरसेनी के समान हैं। प्रयोग वाक्य
(१) अ कहिं गश्चदि (यह कहां जाता है) ? (२) हगे कुटुम्बभलणं कलेमि (मैं कुटुम्ब का भरण करता हूं)। (३) यणे सव्वं न याणदि (मनुष्य सब नहीं जानता है)। (४) शे भोयणं करिदाणि गश्चदि (वह भोजन करके जाता है)। (५) अज्जा धम्मशञ्चों कलेध (अज्ञो! धर्म का संचय करो)। (६) शञ्जम्मध णिअपोटं (अपने पेट को नियंत्रण में रखो)। (७) इंदियचोला हलन्ति चिलशञ्चिदं धम्म (इंद्रिय रूपी चोर चिरसंचित धर्म को हरण करते हैं)। (८) णिच्चं जग्गेध झाणपडहेण (ध्यान रूपी नगारे से हमेशा जागृत रहो) । (६) एकश्शिं दिअशे शे गुणवय्यिदे कहं गय्यिदे (एक दिन वह गुण वर्जित होने पर भी कैसे गरजा) ? (१०) पुलिशे! अस्तश्श पभावं पेक्खिश्शं (पुरुष ! अर्थ का प्रभाव देखूगा)। (११) अणिच्चदाए पेक्खिअ णवल दाव धम्माण शलणं म्हि (अनित्यता से (संसार) को देखकर मैं अब केवल धर्म की शरण में आ गया हूं)। (१२) हडक्के आदले मम (मेरे हृदय में आदर है)। (१३) हगे केलिशे अस्तशञ्चमं कलेमि, मए सह न गमिश्शं (मैं कैसा अर्थ संचय करता हूं, मेरे साथ नहीं जाएगा)। (१४) तश्श दालिदं पणट्ठ (उसका दारिद्रय नष्ट हो गया)। (१५) हगे पुजवन्ते, गुलुशलणे आअडे (मैं पुण्यवान हूं,
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