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________________ मागधी भाषा ४१५ यह नियम ऊर्ध्वलोपादि का अपवाद है। प्रस्खलति (प्रस्खलदि) । हस्तिन् (हस्ती) । वृहस्पतिः (बुहस्पदी) । मस्करी (मस्कली) । विस्मयः (विस्मये)। शुष्क (शुस्क) । कष्टम् (कस्ट) । विष्णुम् (विस्नु) । निष्फलं (निस्फलं)। नियम ६५६ (स्थ-र्थयोः स्तः ४।२६१) मागधी में स्थ और र्थ को स्त होता है। स्थ7स्त-उपस्थितः (उवस्तिदे) । सुस्थितः (शुस्तिदे)। र्थ>स्त-अर्थः (अस्ते) । सार्थवाहः (शस्तवाहे)। नियम ६६० (क्षस्य-कः ४।२६६) मागधी में अनादि में होने वाले क्ष को क होता है। क्ष>-क-यक्षः (य के) । राक्षसः (ल-कशे) । शब्द रूप नियम ६६१ (अत एत्सौ पुसि मागभ्याम् ४।२८७) मागधी में अकार को एकार होता है पुंलिंग की सि परे हो तो। अ7ए-नरः (नले) । कतरः (कयरे)। एषः (एशे)। मेषः (मेशे) । पुरुषः (पुलिशे)। नियम ६६२ (अवर्णाद् वा सो डाहः ४।२६६) मागधी में अवर्ण से परे ङस् को डाह आदेश विकल्प से होता है। हुस् / डाह-जिनस्य (यिणाह) । पक्षे यिणस्स । कर्मणः (कम्माह) । इदृशस्य (एलिशाह) । शोणितस्य (शोणिदाह)। नियम ६६३ (आमो डाहं वा ४।३००) भागधी में अवर्ण से परे आम् को डाह आदेश विकल्प से होता है। जिनानाम् (यिणाह, यिणाणं)। ___व्यत्ययात् प्राकृतेपि-कर्मणाम् (कम्माहँ) तेषां (ताह) युष्माकम् (तुम्हाह) सरिताम् (सरिआहे) अस्माकम् (अम्हाह) आवेश नियम ६६४ (अहं-वयमोहगे ४।३०१) अहं और वयं को हगे आदेश होता है । अहं (हगे) । वयं (हगे) [अस्मदः सौ हके हगे अहके ११९] वररुचि के अनुसार मागधी में अहं को हके, हगे और अहके—ये तीन आदेश होते हैं । अहं भणामि (हके, हगे अहके भणामि) [शृगालशब्दस्य शिआला शिआलका ११७ बररचि] शृगाल को शिआल और शिआलक आदेश होते हैं। शृगालः आगच्छति (शिआले, शिआलके आगच्छदि) [हृदयस्य हडक्कः ११३६ वररुचि] हृदय शब्द को हडक्क आदेश होता हैं । हृदये आदरो मम (हडक्के आदले मम ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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