SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत वाक्यरचना बोध ५. बालअस्स हिअं सुहं वा लहुभोयणं । ६. सो कुंडलाय हिरण्णं णेइ । रामो घटाय मत्तिआ इच्छइ । ७. नमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं । भत्ताणं सुत्थि । पिअराणं सुहा । ८. विमलो मोहणाय सयं धरई । ६. विजयाय सलाहइ, विणयाय हुणइ, विमलाय चिट्ठइ, सुरेसाय सवइ । प्राकृत में अनुबाद करो पति घर में नहीं है । पत्नी अपने देवर को भिक्षा देती है । देवरानी सासू की सेवा करती है। साली साले को प्रतिदिन प्रणाम करती है । ससुर सास से क्या कहता है ? साला ससुर को नमस्कार करता है । पत्नी प्रेयसी से गुस्सा करती है । सासरे में दुलहन संकोच करती है । पत्नी पति के साथ कहां जाती है ? बडासाला अपनी बहन को शिक्षा देता है । बडीसाली सास को प्रतिदिन प्रणाम करती है । विभक्ति का प्रयोग करो १. तुम्हें दूध प्रिय है । राम को ठण्डा पानी प्रिय है । २. सुशीला लता से ईर्ष्या करती है । सुलोचना रमा से क्रोध करती है । राम मोहन से द्रोह करता है । ललिता से पद्मावती असूया करती है । ३. राजेन्द्र फूलों को चाहता है । सीता गर्म दूध चाहती है । ४. मैं धन देने में समर्थ हूं । गुरु को नमस्कार है । प्रजा ( प ) का कल्याण हो ( सुत्थि ) । पितरों को समर्पित है ( सुहा) । ५. ग्राम के लिए स्कूल हितकर है। दूध तुम्हारे लिए सुखकर है । ६. मकान के लिए यह काष्ठ है । सोना कुंडल के लिए है । ७. श्याम रामू से सौ रुपये कर्ज लेता है । ८. अग्रगामी अनुगामी की श्लाघा करता है । प्रश्न १. दानपात्र किसे कहते हैं ? उसमें कौनसी विभक्ति होती है ? २. देना और दानपात्र का भेद बताओ । ३. चतुर्थी विभक्ति कहां-कहां होती है ? इस पाठ के अनुसार एक-एक उदाहरण दो । ४. नीचे लिखे शब्दों के प्राकृत शब्द बताओ - सासू, दुलहिन, पत्नी, प्रयसी, साली, सासरा, देवरानी, जंवाई (दामाद), देवर, बड़ी साली और बड़ा साला । ५. नीचे लिखी धातुओं के अर्थ बताओ और वाक्य में प्रयोग करो । रूस, पणाम, सिक्ख, णिवेअ, संकुच । ६. हस धातु के कर्तृवाच्य के सारे रूप लिखो । ७. अण्णमण्णं, अनंतर, अंतो-इन अव्ययों के अर्थ बताओ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy