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. दानपात्र ...
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है—इन दो वाक्यों में देने की क्रिया अवश्य है, पर श्रद्धा, उपकार या कीर्ति की भावना से नहीं है। पहले वाक्य से रुपयों के विनिमय से कार्य कराया जाता है । दूसरे वाक्य में व्यवस्था की दृष्टि से देता है । मन न होने पर भी देना होता है । इसलिए ऊपर के दोनों वाक्यों की दानपात्र संज्ञा नहीं है। चतुर्थी विभक्ति १. रोय (रुच) अर्थ वाली धातुओं के योग में जिस व्यक्ति को जो
पदार्थ रुचता हो, उस व्यक्ति में चतुर्थी विभक्ति होती है। २. कुज्झ (क्रुध ) दोह (द्रुह), ईस (ईष्) तथा असूअ (असूय) धातुओं के योग में जिनके ऊपर क्रोधादि किया जाता हो उसमें
चतुर्थी विभक्ति होती है। ३. मिह (स्पृह ) धातु के योग में चतुर्थी विभक्ति विकल्प से होती है। ४. समत्थ (समर्थ) अर्थ वाले शब्द (अलं, खमो, पभू), नमो, सुत्थि,
(स्वस्ति) सुहा, सुआहा आदि शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। ५. हिअ (हित) और सुह (सुख) शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति
होती है। ६. जिस वस्तु से किसी वस्तु का निर्माण किया जाता हो उस निर्मित ___ वस्तु में चतुर्थी होती है, उपादान वस्तु का साथ में प्रयोग हो तो। ७. कर्ज लेना धातु के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। ८. सलाह (श्लाघ) हुण, (हनु) चिट्ट (स्था) सव (शप्) धातुओं के
योग में चतुर्थी विभक्ति होती है । प्रयोग वाक्य
पई धम्म न करेइ । भज्जा पइणा सह पइदिणं उज्जाणो परिअडइ । अवलो णियभगिणि किं कहइ ? कुली अज्ज गिहे नत्थि । अणरहं ससुरालयं गक्छइ । देअरो महुवयणं जंपइ । अण्णिआ दिणे सइ भुजइ । अवलो ससुरं पणमइ । सालो जामा सक्कारेइ । सासू अणरहुं कि पुच्छइ ? साली अण्णअं हंसइ । णवा ससुरालये अपरिचिआ होइ । पीअसी पइणा समं भमइ । तणयो जणअस्स सव्वं निवेअइ । मुणी संथारस्स गिरि आरोहइ । चतों विभक्ति का प्रयोग
१. मज्झ मोअगा रोअन्ते । तुज्झवियारो मम रोयइ । २. रमेसो रामाय कुज्झइ, दोहइ, ईसइ, असूअइ वा । ३. विमला पुप्फाण पुप्फाणि वा सिहइ। लोभी धणस्स धणं वा सिहइ । ४. दारा सासूए कहणं सहणस्स पभू । अहं जंपणाय समत्थो मि । मल्लो
मल्लस्स अलं ।
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