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दानपात्र
शब्दसंग्रह (परिवार वर्ग ३) पति-भत्ता, सामी, पई (पुं) पत्नी-भज्जा, भारिया, दारा देवर-दिअरो, देअरो, अण्णओ (दे.) साली-साली देवरानी--अण्णी (दे.) अण्णिआ (दे.) दुलहिन----अणरहू (स्त्री दे०) णवा ससुर-ससुरो
सास-सस्सू, सासू, अत्ता (दे.) साला-सालो
बड़ीसाली---कुली बड़ासाला-अवलो (सं)
प्रेयसी--पीअसी, पेअसी सासरा-ससुरालयो
घूघट-अंगुट्ठी, विरगी (दे.) अवउठणं, अवगुंठणं ।
धातु संग्रह णिवेअ----निवेदन करना हो-होना पणम-प्रणाम करना
सिक्ख-शिक्षा देना आरोहण--ऊपर चढना संकुच--संकोच करना
अव्यय संग्रह अण्णोण्णं, अण्णमणं (अन्योन्यं) परस्पर, आपस में अणंतर (अन्तर) पश्चात्, इसके बाद अन्तो (अन्तर) भीतर अण्णहा (अन्यथा) नहीं तो
स्त्रीलिङ्ग आकारान्त माला शब्द के रूप याद करो (देखो परिशिष्ट १ संक्या २२)। दानपात्र
कर्म के द्वारा अथवा क्रिया के द्वारा श्रद्धा, उपकार या कीति की इच्छा से जिसको कोई वस्तु दी जाए अथवा जिसके लिए कोई कार्य किया जाए, उसे दानपात्र कहते हैं । दानपात्र में चतुर्थी विभक्ति होती है । श्रमण के लिए भिक्षा देता है---इस वाक्य में श्रमण को श्रद्धा से भिक्षा दी जाती है। गुरु को कार्य निवेदन करता है----यहां निवेदन श्रद्धा से किया जाता है, इस लिए गुरु की दानपात्र संज्ञा है। धोबी को वस्त्र देता है, राजा को कर देता
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