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________________ शौरसेनी ४११ भो संपन्ना मणोरधा पियवयस्सस्स ) । धातु रूप नियम ९४६ (भुवो भः ४।२६६) शौरसेनी में भुव (भू) के ह को भ विकल्प से होता है। ह>भ-भवति (भोदि, होदि)। नियम १४७ (दिरिचेचोः ४।२७३) इच् (इ) एच् (ए) के स्थान पर दि होता है । भवति (भोदि, होदि)। नियम ९४८ (अतो वेश्च ४।२७४) अकार से परे इ और ए के स्थान पर दे और दि होता है। भवति (भुवदे, भुवदि, हुवदे, हुवदि) । गच्छति (गच्छदे, गच्छदि)। रमते (रमदे, रमदि)। नियम ९४६ (भविष्यति स्सिः ४।२७५) शौरसेनी में भविष्य अर्थ में विहित प्रत्यय (हि, हा, स्सा) को स्सि होता है। भविष्यति (भविहिदि, भचिस्सिदि)। गमिष्यति (गमिहिदि, गमिस्सिदि)। कृदन्त नियम ९५० (क्त्व इय-दूणो ४।२७१) शौरसेनी में क्त्वा प्रत्यय को इय, दण आदेश विकल्प से होते हैं। भूत्वा (भविय, भोदूण)। रन्त्वा (रमिय, रन्दूण) पक्ष में भोत्ता, रन्ता। . नियम ६५१ (कृ-गमो डडुमः ४।२७२) कृ और गम् से परे क्त्वा प्रत्यय को डडुअ आदेश विकल्प से होता है । कृत्वा (कडुअ, करिय, करिदूण) । गत्वा (गडुअ, गच्छिय, गच्छिदूण) । नियम ६५२ शेषं प्राकृतवत् ४।२८६) शौरसेनी में बताए गए नियमों के अतिरिक्त शेष नियम प्राकृत के ही लगते हैं। प्रयोग वाक्य (१) भयवं मज्झ भावं जाणदि (भगवान् मेरे भाव को जानते हैं)। (२) पादेसु पणामिअ णिव्वत्तेहि णं (चरणों में प्रणाम कर लोट आओ)। (३) इध राअउले तं दे भोदु (इस राजकुल में वह तुम्हारे लिए हो) । (४) भवं कधं गच्छदि तस्स पासे (आप उसके पास कैसे जाते हैं) ? (५) णाधस्स का परिभाषा भोदि (नाथ की क्या परिभाषा होती है) ? (६) दाणि अय्याए कय्य को करिस्सदि (इस समय आर्या का कार्य कौन करेगा) ? (७) अम्हाणं पुरदो को गच्छदि (हमारे आगे कौन जाता है) ? (८) ईदिसं भयवं दूरे वन्दीअदि (ऐसे भगवान को दूर से नमस्कार किया जाता है)। (६) सो कय्यं करिदूण निश्चिन्दो रादीए सुवइ (वह कार्य करके रात में निश्चिन्त हो सोता है)। (१०) अण्णं अण्णं णिमन्तेदु दाव भवं (तब तक आप दूसरे-दूसरे को निमंत्रित करें) । (११) एसो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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