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________________ प्राकृत वाक्यरचना बोध (कयवं)। नियम ६३६ (मा आमन्त्रये सौ वेनो नः ४।२६३) शौरसेनी में इन के नकार को आ विकल्प से होता है, आमन्त्रण अर्थ में होने वाला सि प्रत्यय परे हो तो। हे सुखिन् (सुहिआ, सुहि ।) नियम ९३७ (मो वा ४।२६४) शौरसेनी में आमन्त्रण सि परे हो तो नकार को म विकल्प से होता है। 7म्-हे भगवन् (भयवं, भयव)। नियम ९३८ (इह-हयो हंस्य ४१२६८) शौरसेनी में (मध्यमस्ये स्थाहचौ ३।१४३) से इह शब्द के होने वाले हच (ह) को ध विकल्प से होता है। ह74-इह (इध, इह)। भव (होध, होह)। परित्रायध्वम् (परित्तायध, परित्तायह)। नियम ६३६ (इदानीमो दाणि ४१२७७) शौरसेनी में इदानीं के स्थान पर दाणि आदेश होता है। इदानीं>दाणि--इदानीम् (दाणि)। अन्याम् इदानीं बोधिम् (अण्णं दाणि बोहिं)। अव्यय नियम ९४० (एवार्थे य्येव ४१२८०) शौरसेनी में एव अर्थ में य्येव निपात है । सः एव एषः (सो य्येव एसो) । नियम ९४१ (हजे चेट्याहाने ४।२८१) दासी को बुलाने में हजे निपात है । हे चतुरिके (हजे चदुरिके)। नियम ९४२ (हीमाणहे विस्मय-निर्वेदे ४।२८२) विस्मय और निर्वेद अर्थ में हीमाणहे निपात है। विस्मये-आश्चयं यत् जीवत्वत्सा मे जननी (हीमाणहे जीवन्तवच्छा मे जननी) । निर्वेदे--दुखं, यत् परिश्रान्ता वयं एतेन निजविधेः दुर्व्यसितेन (हीमाणहे पलिस्सन्ता हगे एदेण नियविधिणो दुव्ववसिदेण) । नियम ९४३ (णं नन्वर्थे ४।२८३) ननु अर्थ में णं निपात है। ननु भवान् मम अग्रतः चलति (णं भवं मे अग्गदो चलदि) आर्ष में वाक्यालंकार में भी-नमोत्थु णं, जया णं, तया णं । नियम ९४४ (अम्महे हर्षे ४।२८४) हर्ष अर्थ में अम्महे निपात है। हर्षः, यत् एतस्यां सूर्मिलया सुपरिगृद्धः भवान् (अम्महे एआए सुम्मिलाए सुपलिगढिदो भवं)। नियम ९४५ (हीहीविदूषकस्य ४१२८५) शौरसेनी में विदूषकों के हर्ष में हीही निपात है। हर्ष : यत् संपन्नाः मनोरथाः प्रियवयस्यस्य (हीही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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