________________
शौरसेनी
४०६ नियम ६२७ (अधः क्वचित् ४१२६१) शौरसेनी में वर्णान्तर के पश्चाद् कहीं-कहीं अधःस्थित त को द होता है। त 7द-निश्चिन्तः (निच्चिन्दो)। शकुन्तला (सउन्दला)। अन्तःपुरम्
(अन्देउरं)।
नियम ६२८ (वादे स्तावति ४१२६२) शौरसेनी में तावत् शब्द के आदि त को द विकल्प से होता है। त7द-तावत् (दाव, ताव)।
नियम ६२६ (थो धः ४।२६७) शौरसेनी में पद के अनादि में होने वाले थ को ध विकल्प से होता है। थ' ध–नाथः (णाधो, णाहो) । कथम् (कध, कह) । राजपथः (राजपधी)।
. नियम ६३० (न वा यो ग्यः ४।२६६) शौरसेनी में ये के स्थान में य्य विकल्प से होता है।
7 स्यआर्यपुत्रः (अय्यउत्तो)। पर्याकुल: (पय्याकुलो) पक्षे पज्जाकुलो (चग्य योजः २।२४ नियम ३१७ से ज हुआ है।)
नियम ९३१ (पूर्वस्य पुरवः ४।२७०) शौरसेनी में पूर्व शब्द को पुरव आदेश विकल्प से होता है। अपूर्व (अपुरवं) पक्षे अपुव्वं । (सर्वत्र लवरी २१७९ नियम ३९६ से र लोप, अनादी शेषादेशयोः २।८९ नियम ४२० से द्वित्व)।
नियम ६३२ (मोन्त्याण्णो वेदेतोः ४।२७६) शोरसेनी में अन्त्य मकार से परे इकार और एकार को णकार का आगम विकल्प से होता है। युक्तमिदम् (जुत्तंणिम, जुत्त मिणं), किमेतत् (किं णेदें, किमेदं) एवमेतत् (एवं णेदं, एवमेदं) । सदृशं इदं (सरिसं णिमं, सरिसमिणं) । शब्दसिद्धि
नियम ६३३ (अतो इसे दो-डादू ४।२७६) शौरसेनी में अकार से परे सि को डादो और डादु आदेश विकल्प से होता है। सि 7 डावो, डावु-जिनात् (जिणादो, जिणादु), वीरात् (वीरादो, वीरादु)।
नियम ६३४ (तस्मात् ताः ४१२७८) शौरसेनी में तस्माद् को ता आदेश होता है। तस्माद् 7 ता-तस्माद् (ता)। तस्मात् यावत् प्रविशामि (ता जाव पविसामि) 1 तस्मात् अलं एतेन मानेन (ता अलं एदिणा माणेण)।
नियम ९३५ (भवद्-भगवतो: ४।२६५) शौरसेनी में भवत् और भगवत् शब्द से परे सि प्रत्यय हो तो न् को म् हो जाता है। न 7म-भवान् (भवं) भगवान् (भगवं) । कहीं पर अन्य शब्दों को भी
म् हो जाता है । मघवान् (मघवं), संपादितवान् (संपाइअवं) कृतवान्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org