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________________ ११० शौरसेनी ० शौरसेनी में जो नियम बताए गए हैं उनके अतिरिक्त सारे नियम प्राकृत के ही लगते हैं। ० शौरसेनी में उपसर्ग प्राकृत के ही समान हैं। उनमें अक्षर-परिवर्तन आगे के नियमानुसार कर लेना चाहिए। अति-अदि (नियम ६२६ त को द)। • अकारान्त पुंलिंग शब्द के रूप प्राकृत के तरह ही चलते हैं किन्तु पंचमी विभक्ति के एकवचन का रूप आदो और आदु प्रत्यय जोडने से बनता है। जिणादो, जिणादु । वीरादो, वीरादु । ० शब्द परिवर्तन-वात का वाद, अज्ज का अय्य बनता है और शब्दों के परिवर्तन के लिए देखो (नियम ६२६,६३०)। • आज्ञार्थक प्रत्ययों में तु के स्थान पर दु का प्रयोग होता है। जीवदु (जीवतु, जीवउ) मरदु (मरतु, मरउ)। वर्तमानकाल देक्ख धातु के एकवचन के रूपप्र०पु०-देक्खदि/देवखेदि/देक्खदे/देवखेदे म०पु०-देक्खसि/देक्खेसि/देक्खसे/देखेसे उ०पु०-देक्खमि/देक्लेमि । भविष्यकाल के देवख धातु के रूपएकवचन बहुवचन प्र.पु०-देक्खिस्सिदि, देक्खिस्सिदे देक्खिस्सिंति, देक्खिस्सिते, देक्खिस्सिइरे म०पु०-देक्खिस्सिसि , देक्खिस्सिसे देक्खिस्सिह, देक्खिस्सिध देक्खिस्सिइत्था उ०पु०-दैक्खिस्स, देक्खिस्सिमि देक्खिस्सिमो, देखिस्सिमु, देक्खिस्सिम देक्ख धातु की तरह अन्य धातुओं के रूप चलते हैं। वर्णादेश नियम ९२६ (तो दोनादी शौरसेन्यामसंयुक्तस्य ४१२६०) शौरसेनो में अनादि और असंयुक्त त को द हो जाता है। त>द-ततः मारुतिना (तदो मारुदिना) । एतस्मात् (एदाहि, एदाहो) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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