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शौरसेनी
० शौरसेनी में जो नियम बताए गए हैं उनके अतिरिक्त सारे नियम
प्राकृत के ही लगते हैं। ० शौरसेनी में उपसर्ग प्राकृत के ही समान हैं। उनमें अक्षर-परिवर्तन
आगे के नियमानुसार कर लेना चाहिए। अति-अदि (नियम ६२६ त को द)। • अकारान्त पुंलिंग शब्द के रूप प्राकृत के तरह ही चलते हैं किन्तु पंचमी विभक्ति के एकवचन का रूप आदो और आदु प्रत्यय जोडने से बनता
है। जिणादो, जिणादु । वीरादो, वीरादु । ० शब्द परिवर्तन-वात का वाद, अज्ज का अय्य बनता है और शब्दों
के परिवर्तन के लिए देखो (नियम ६२६,६३०)। • आज्ञार्थक प्रत्ययों में तु के स्थान पर दु का प्रयोग होता है। जीवदु
(जीवतु, जीवउ) मरदु (मरतु, मरउ)।
वर्तमानकाल देक्ख धातु के एकवचन के रूपप्र०पु०-देक्खदि/देवखेदि/देक्खदे/देवखेदे म०पु०-देक्खसि/देक्खेसि/देक्खसे/देखेसे उ०पु०-देक्खमि/देक्लेमि । भविष्यकाल के देवख धातु के रूपएकवचन
बहुवचन प्र.पु०-देक्खिस्सिदि, देक्खिस्सिदे देक्खिस्सिंति, देक्खिस्सिते,
देक्खिस्सिइरे म०पु०-देक्खिस्सिसि , देक्खिस्सिसे देक्खिस्सिह, देक्खिस्सिध
देक्खिस्सिइत्था उ०पु०-दैक्खिस्स, देक्खिस्सिमि देक्खिस्सिमो, देखिस्सिमु,
देक्खिस्सिम देक्ख धातु की तरह अन्य धातुओं के रूप चलते हैं। वर्णादेश
नियम ९२६ (तो दोनादी शौरसेन्यामसंयुक्तस्य ४१२६०) शौरसेनो में अनादि और असंयुक्त त को द हो जाता है। त>द-ततः मारुतिना (तदो मारुदिना) । एतस्मात् (एदाहि, एदाहो) ।
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