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________________ १०६ धातुवर्णादेश (२) शब्द संग्रह पट्ठिओ-प्रस्थान किया पच्छओ-पीछे से खुड्डओ-छोटा साधु समावडिया-सामने आई तिसा-प्यास नित्थर-पार करना (धातु) खंतओ (दे०)-बाप पडिच्छइ-ग्रहण करना सत्तसारय-जीवों को याद विडस (वि)--विद्वान् करने वाला मलिण-मैला फट्रिअंवत्थं-फटे वस्त्र पारेवय-कबूतर आसा-आशा, अभिलाषा नियम ६१४ (सृजोरः ४।२२६) सृज्, धातु के अन्त्य को र होता है। ज>र सृज-निसिरइ, वोसिरइ । वोसिरामि । नियम ६१५ (शकादीनां द्वित्वम् ४१२३०) शक् आदि धातुओं का अन्त्य वर्ण द्वित्व हो जाता है । शक्-सक्कइ । जिम्-जिम्मइ । लगलग्गइ । मग-मग्गइ । कुप्-कुप्पइ । नश्-नस्सइ । अट्-अट्टइ । परिअट्टइ। लुट-पलोट्टइ। तुट-तुट्टइ । नट-नट्टइ । सिव्-सिव्वइ । इत्यादि। नियम ६१६ (स्फुटि चलेः ४।२३१) स्फुट और चल धातु के अन्त्य को द्वित्व विकल्प से होता है । स्फुट-फुट्टइ, फुडइ । चल-चल्लइ, चलइ । नियम ६१७ (प्रादे मौलेः ४१२३२) प्र आदि से परे मील धातु के अन्त्य वर्ण को द्वित्व विकल्प से होता है। पमील-पमिल्लइ, पमीलइ । निमिल्लइ, निमीलइ । संमिल्लइ, संमीलइ । उम्मिलइ, उम्मीलइ । प्र आदि न होने से द्वित्व नहीं होता है---मीलइ । __ नियम ६१८ (उवर्णस्यावः ४१२३३) धातु के अन्त्य उवर्ण को अव आदेश होता है। उवर्ण 7 अव न्हुङ-निण्हवइ । हु--निहवइ । च्युङ-चवइ । रु-रवइ । कु-कवइ । सू-सवइ, पसवइ । नियम ६१९ (ऋवर्णस्यारः ४१२३४) धातु के अन्त्य ऋवर्ण को अर ___ आदेश होता है। सुवर्ण 7 अर कृ-करइ। धू-धरइ । मृ-मरइ। -वरइ । सृ-सरह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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