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________________ ४०६ प्राकृत वाक्यरचना बोध ह-हरइ । त-तरइ । ज-जरइ । नियम ६२० (वृषादीनामरिः ४।२३५) वृष जैसी धातुओं के ऋवर्ण को अरि आदेश होता है। ऋवर्ण 7 अरि वृष्-वरिसइ । कृष्–करिसइ । मृष्-मरिसइ। हृष् हरिसइ । जिन धातुओं के अरि आदेश दिखाई दें उन्हें इस नियम के अन्तर्गत समझें। नियम ६२१ (रुषादीनां दीर्घः ४।२३६) रुस् जैसी धातुओं का स्वर दीर्घ हो जाता है। उ73 रुस्-रूसइ । तुष्-तूसइ । शुष्-सूसइ। दुष्-दूसइ। पुष् पूसइ । शिष्-सीसइ। नियम ६२२ (युवर्णस्य गुणः ४।२३७) धातु के इवर्ण और उवर्ण को गुण हो जाता है, क्ङिति प्रत्यय परे हो तो। इवर्ण, उवर्ण 7 गुण जि-जेऊण । णी-नेऊण, नेइ, नेति । डी-उड्डेइ, उड्डति । मुच्-मोत्तूण । श्रु-सोऊण। नियम ६२३ [स्वराणां स्वराः ४१२३८] धातुओं के स्वरों के स्थान पर स्वर विकल्प से होते हैं। स्वर 7 स्वर हवइ-हिवइ । चिणइ, चुणइ । सद्दहणं, सहहाणं । धावइ, धुवइ । रुवइ, रोवइ । कहीं-कहीं पर नित्य होता है। दा-देइ । ली-लेइ । हा-विहेइ । नस्-नासइ । नियम ६२४ (चि-जि-श्रु-हु-स्तु-लू-पू-धूगांणो हस्वश्च ४।२४१) चि, जि, श्रु, हु, स्तु, लू, और पू धातु के अंत में णकार का आगम होता है और इनका स्वर ह्रस्व हो जाता है। चिणइ, जिणइ, सुणइ, हुणइ, थुणइ, लुणइ, पुणइ । बहुलाधिकार से कहीं ण विकल्प से होता है। उच्चिणइ, उच्चेइ । जेऊण, जिणिऊण । जयइ, जिणइ । सोऊण, सुणिऊण । नियम ९२५ (धातवोर्थान्तरेपि ४१२५६) धातुओं के अर्थ बताए गए हैं उनसे भिन्न अर्थ में भी धातुएं प्रयुक्त होती हैं । जैसे—बलिः प्राणने खादने पि । वलइ खादति, प्राणनं करोति वा। कलिः संख्याने संज्ञानेपि । कलइ जानाति, संख्यानं करोति वा । रिगिर्गतौ प्रवेशेपि । रिगइ गच्छति, प्रविशति वा । कांक्षते र्वम्फ आदेशः प्राकृते । वम्फइ इच्छति, खादति वा। फक्कतेस्थक्क आदेशः । थक्कइ नीचांगतिकरोति, विलम्बयति वा । विलुप्युपालम्भ्योझङ ख आदेशः । झङ्खइ, विलपति, उपालभते, भाषते वा । पडिवालेइ प्रतीक्षते, रक्षति वा। हिन्दी में अनुवाद करो उज्जेणी णयरी। तत्थ धणमित्तो नाम वाणियओ। तस्सपुत्तो धणसम्मो नाम । सो धणमित्तो पुत्तेण सह पव्वइओ । अन्नया य ते साहू विहरंता मज्झण्ह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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