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________________ प्राकृत वाक्यरचना बोध गायंतं पणच्चमाणं तं च विकयरूवं परिभंमंतं दट्ठूण जो पओसइ उवहसइ पर्वचेइ वा तस्स सत्तहा सिरं फुट्टइ । जो पुण तं सुहाहि वायाहि अहिनंदइ धूवपुप्फाइएहिं पूएइ सो सव्वामयाणं मुच्चइ । राया भणइ –– अलाहि एएणं वि । इओ भगइ - ममावि एवं विहं चेव नाइवेसकरं भूयमत्थि, पियापियकारिं दंसणाओ एव रोगेहितो मोयइ । एवं होउ त्ति । तेण तहा कए असिवं उवसंतं । तुट्टो राया । आनंदिया नायरया । पूइओ सो भूयवाई सव्वेहि पि । प्राकृत में अनुवाद करो ४०४ ग्रीष्म ऋतु में एक दिन एक यात्री जंगल से होकर जा रहा था। जब अपराह्न काल हुआ तब उसे प्यास लग गई। सभी जलाशय और नदियां सूख गई थीं । उसे अपनी प्यास बुझाने के लिए कहीं भी पानी नहीं मिला । अंत में वह नारियल के वृक्ष के नीचे आया । वृक्ष पर कोमल नारियल लगे थे । वृक्ष लम्बे होने के कारण वह नारियल के फल तक नहीं जा सकता था । वृक्ष पर अनेक बंदरों को बैठा हुआ देखकर उस चतुर यात्री ने एक उपाय सोचा । उसने भूमि पर से कुछ पत्थरों को लेकर लगातार बंदरों पर फेंका। बंदर भी नारियल फल को तोडकर यात्री को मारने लगे । उसने उन नारियलों को बडे आनंद से संगृहीत कर लिया। उनके मधुर जल से अपनी प्यास बुझा कर वह अपने पथ पर चल दिया । सहजबुद्धि मनुष्य का परम साथी है । प्रश्न ११. नीचे लिखे रूपों में बताओ धातु के किस वर्ण को किस नियम से क्या आदेश हुआ है ? जच्छ, गिज्झ, सिज्झ, रुम्भ, रुज्झ, सड, पड, वेढ, संवेल्ल, उब्वेल्ल, खिज्ज, वच्च मच्च, उब्विव । 3 २. असिव, अलाहि, चिप्पिड, जत्ती, नायरया - इन शब्दों के अर्थ बताओ और वाक्य में प्रयोग करो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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