SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धात्वादेश (६) ३८६ होता है। वि सहित नहीं होता है। जृम्भति (जम्भाइ) जंभाइ लेता है। केलिपसरो विअम्भइ (केले के वृक्ष का फैलाव विकसित होता है)। नियम ८४८ (भाराकान्ते नमेणिसुढः ४।१५८) भाराक्रान्त कर्ता हो तो नम् धातु को णिसुढ आदेश विकल्प से होता है। भाराकान्तो नमति (णिसुढइ, णवइ)। नियम ८४६ (विश्रणव्वा ४११५६) विश्राम्यति को णिव्वा आदेश विकल्प से होता है । विश्राम्यति (णिव्वाइ, वीसमइ) विश्राम करता नियम ८५० (आक्रमे रोहावोत्थारच्छन्दाः ४।१६०) आक्रमति को ओहाव, उत्थार और छुन्द-ये तीन आदेश विकल्प से होते हैं। आक्रमति (ओहावइ, उत्थारइ, छुन्दइ, अक्कमइ) आक्रमण करता है। नियम ८५१ (भ्रमेष्टिरिटिल्ल-ढण्दुल्ल-ढण्ढल्ल-चक्कम्म-भम्मड-भमड भमाड-तलअण्ट-झण्ट-झम्प-भुम-गुम-फुम-फुस-ढम-दुस-परी-परा: ४।१६१) भ्रम् धातु को टिरिटिल्ल आदि अठारह आदेश विकल्प से होते हैं। भ्रमति (टिरिटिल्लइ, ढुण्ढुल्लइ, ढण्ढल्लइ, चक्कम्मइ, भम्मडइ, भमडइ, भमाडइ, तलअण्टइ, झण्टइ, झम्पइ, भुमइ, गुमइ, फुमइ, फुसइ, दुमइ, दुसइ, परीइ, परइ, भमइ) घूमता है। धातु प्रयोग वाक्य वातो गंधं तडइ, तड्डइ, तड्डवइ, विरल्लइ, तणइ वा। तुज्झ महुरं वयणं सुणिऊण अहं थिप्पामि । मुणी आयरियं अल्लिअइ, उवसप्पइ वा । केण कारणेण, तुमं झंङ खसि, संतप्पसि वा ? सोहणो घयेण घडं ओअग्गइ, वावेइ वा। आयरिओ कल्लं सिग्धं वक्खाणं समाणिस्सइ, समाविस्सइ वा। रमेसो रुक्खस्स अवरि पत्थराणि कहं गलत्थइ, अड्डक्खइ, सोल्लइ, पेल्लइ, णोल्लइ, छुहइ, हुलइ, परीइ, घत्तइ, खिवइ वा ? सुसीला तणस्स भारं गुलगुंछइ, उत्थंघइ, अल्लत्थइ, अब्भुत्तइ, उस्सिक्कइ, हक्खुवइ, उक्खिवाइ वा। तुमं महेसं कह णीरवसि, अक्खिवसि वा ? किं सो गिम्हकाले वि दिवहे न कमवसइ, लिसइ, लोट्टइ, सुअइ वा ? अप्पेणावि वातेण पाणियं आयम्बइ, आयज्झइ, वेवइ वा। किं तुज्झ भगिणी झङ्खइ, वडवडइ, विलवइ वा । विमला भीइं लिम्पइ। मुणी गिम्हकाले विहारम्मि विरइ, णडइ, गुप्पइ वा ? गुरु सीसं अवहावेइ । दीवो सयं तेअइ, सन्दुमइ, सन्धुक्कइ, अब्भुत्तइ, पलीवइ वा । तुम णवरं धणं संभावइ, लुब्भइ वा। तुज्झ पत्थरखेअणपमाएण पाणि खउरइ, पड्डुहइ, खुब्भइ वा । धम्मेसो अज्ज वागरणस्स अज्झयणं आरम्भइ, आढवइ, आरभइ वा। सासू पुत्तवहुं झङ खइ, पच्चारइ , वेलवइ, उवालम्भइ वा । अज्जाहं जम्भामि । रुक्खो णिसुढई, णवइ वा। सक्षम्मि पहिओ णिव्वाइ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy