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प्राकृत वाक्यरचना बोध
उत्थङ, घइ, अल्लत्थइ, उन्भुत्तइ, उस्सिक्कर, हक्खुवइ ) ऊंचा करता है, उठाता है ।
नियम ८३५ ( आक्षिपे गौरव: ४। १४५) आ पूर्वक क्षिप् धातु को नीरव आदेश विकल्प से होता है । आक्षिपति (णीरवर, अक्विइ) आक्षेप करता है ।
नियम ८३६ (स्वपे: कमवस- लिस-लोट्टा: ४।१४६) स्वप् धातु को कमवस, लिस और लोट्ट— ये आदेश विकल्प से होते हैं । स्वपिति ( कमवसर, लिसइ, लोट्टइ, सुअइ) सोता है, लेटता है ।
नियम ८३७ (वेपेरायम्बायज्भो ४।१४७) वेप् धातु को आयम्ब और आयज्भ आदेश विकल्प से होते हैं । वेपते (आयम्बइ, आयज्झइ, बेवइ) कांपता है, हिलता है । नियम ८३८ ( विलपेङ ख- वडवडी ४।१४८) वि पूर्वक लप् धातु को झङख और वडवड आदेश विकल्प से होते हैं । विलपति ( झंखइ, वडवडs, विलas) विलाप करता है, चिल्लाता है !
नियम ८३६ ( लिपो लिम्पः ४ । १४६ ) लिम्पति को लिम्प आदेश होता है । लिम्पइ (लिम्पते) लीपता है ।
नियम ८४० ( गुप्ये विर-णडौ ४।१५० ) गुप्यति को विर और गड आदेश विकल्प से होता है । गुप्पइ (विरइ, गडइ, गुप्यति) व्याकुल होता है । नियम ८४१ ( ऋपोवहोणि: ४। १५१) ऋप् धातु को भिन्नन्त अवह आदेश होता है | कृपां करोति ( अवहावेइ) कृपा करता है ।
नियम ८४२ (प्रदीपेस्ते अव-सन्दुम- सन्धुक्कान्भुत्ताः ४।१५२) प्रदीप्यति को तेअव, सन्दुम, सन्धुक्क, अब्भुत्त- ये चार आदेश होते हैं । प्रदीप्यति ( तेअवइ, सन्दुमइ, सन्धुक्कइ, अभुत्तइ, पलीवइ ) जलता है ।
नियम ८४३ ( लुभेः संभाव: ४।१५३) लुभ्यति को संभाव आदेश विकल्प से होता है | लुभ्यति (संभावइ, लुब्भइ) लोभ करता है ।
नियम ८४४ (क्षुमे: खउर- पड्डुही ४।१५४) क्षुभ धातु को खउर और पड्डुह आदेश विकल्प से होते हैं । क्षुभ्यति (खउरइ, पड्डुहइ, खुब्भइ) क्षुब्ध होता है । नियम ८४५ ( आङो रमे रम्भ- हवी ४।१५५) आपूर्वक रम् धातु को रम्भ और ढव आदेश विकल्प से होते हैं । आरभते ( आरम्भइ, आढवई, आरभइ) आरंभ करता है ।
नियम ८४६ ( उपालम्भे भंङ ख- पच्चार- वेलवाः ४।१५६ ) उपालंभते को झङ्ख, पच्चार और वेलव- ये तीन आदेश विकल्प से होते हैं । उपालंभते (झङं खइ, पच्चारइ, वेलवइ उवालंभइ ) उपालंभ देता है ।
नियम ८४७ (अवे जृम्भो - जम्मा ४११५७ ) जृम्भति को जम्भा आदेश
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