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________________ १०५ धात्वादेश ( ६ ) खत्तं (दे.) – सेंध चेड (दे.) - दास, नौकर उद्दवेउ — मारने के लिए धाहा (दे.) – पुकार, चिल्लाहट - मुक्खत्तणं मूर्खता लोभो — लालच शब्द संग्रह अण्डं - अण्डा कुक्कुटी — मुर्गी संतुट्ठो संतुष्ट सुवण (वि) - सोने का असंतोसो - असंतोष नियम ८२७ ( तनेस्तड तड्ड-तड्डव- विरल्लाः ४ । १३७ ) तन् धातु को तड, तड्डु, तड्डव, विरल्ल - ये चार आदेश विकल्प से होते हैं । तनोति (तडइ, तड्डुइ, तडवइ, विरल्लइ, तणइ ) फैलाता है । नियम ८२८ ( तृपस्थिप्प: ४।१३८) तृप्यति को थिप्प आदेश होता है । तृप्यति (थिप्पर) तृप्त होता है, संतुष्ट होता है । नियम ८२ ( उपसर्पेरल्लिअः ४।१३६) उपपूर्वक सर्पति को अल्लिअ आदेश विकल्प से होता है । उपसर्पति (अल्लिअइ, उवसप्पइ ) | नियम ८३० (संतपे झंङखः ४ । १४० ) संपूर्वक तप् धातु को झङ ख आदेश विकल्प से होता है । संतपति ( झङ खइ, संतप्पइ ) संतप्त होता है । Jain Education International नियम ८३१ ( व्यापेरोअग्गः ४ । १४१ ) व्याप्नोति को ओअग्ग आदेश विकल्प से होता है । व्याप्नोति ( ओअग्गर, वावेइ) व्याप्त करता है । नियम ८३२ ( समापेः समाणः ४।१४२) समाप्नोति को समाण आदेश विकल्प से होता है । समाप्नोति ( समाणइ, समावेइ ) पूरा करता है । समास है। नियम ८३३ (क्षिपेर्गलत्याड्डक्ख-सोल्ल - पेल्ल-गोल्ल- छुह-हुल-परीधत्ता: ४। १४३ ) क्षिप् धातु को गलत्थ, अड्डक्ख, सोल्ल, पेल्ल, गोल्ल, ( ह्रस्वे गुल्ल) छुह, हुल, परी, घत्त - ये आदेश विकल्प से होते हैं । क्षिपति ( गलत्थइ, अड्डुक्खड़, सोल्लई, पेल्लइ, गोल्लइ, (गुल्लइ ), छुहइ, हुलइ, परीइ, घत्तइ, विइ) फेंकता है । नियम ८३४ ( उत्क्षिपे गुलगुञ्छोत्थं घाल्लयोब्भुत्तोस्सिक्क हवखुवाः ४। १४४) उत् पूर्वक क्षिप् धातु को गुलगुंछ, उत्थङ्घ, अल्लत्थ, उब्भुत्त, उसिक्क, हक्खुव ये आदेश होते हैं । उत्क्षिपति ( उक्खिवइ गुलगुछइ, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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