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________________ धात्वादेश ( ४ ) जे य कंते पिए भोए, लद्धे विपिट्टिकुम्बई । साहीणे चयइ भोए, से हु चाइ त्ति वुच्चई ॥७॥ धातु का प्रयोग करो क्या वह पद्य में काव्य बना सकता है ? वह भगवान महावीर के जीवन को संस्कृत में पद्यरूप में बनाता है । वह वृक्षों के मूल की अपेक्षा पत्रों को सींचता है । तुमने ज्योतिषी से क्या प्रश्न पूछा ? आज बादल नहीं गरजे । यदि दाहिने पार्श्व में सांड गरजता है तो यात्री शुभ फल पाता है । क्या चंद्रमा दिन में भी आकाश में चमकता है ? नदी में पशु नहीं डूबते फिर आदमी क्यों डूबता है ? कीडी अपने स्वभाव से इकट्ठा करती रहती है । आजकल बहूएं ससुराल में भी लज्जा नहीं करती । तुम्हारा भाई शस्त्र को तेज किसलिए करता है ? तुम वस्त्रों को कब साफ करोगे ? शैक्ष साधु पात्रों को अधिक क्यों तोडता है ? अनुयायी साधुओं का अनुसरण करते हैं। तुम एक मास में कितने रुपए उपार्जन करते हो ? वह दोनों के मन को जोडने के लिए प्रयत्न करता है । साधु टूटे हुए पात्र को कुशलता से जोडता है । तुम सायंकाल भोजन में क्या खाते हो ? वह व्यक्तित्व बनाने के लिए प्रयत्न करता है । प्राकृत में अनुवाद करो ३८१ एक राजा ने एक बार स्वप्न देखा कि मेरे सभी दांत गिर गए हैं । इसे अपशकुन जानकर उसने स्वप्नज्ञाता को बुलाया और अपने स्वप्न का फल पूछा । स्वप्नज्ञाता ने उत्तर दिया इसका फल बहुत बुरा है । आपके परिवार के सभी सदस्य आपके सामने ही मर जाऐंगे। यह सुनकर राजा कुपित हो गया और उसे कैद में बंद करा दिया। राजा ने दूसरे स्वप्नज्ञाता को बुलाया और स्वप्न का फल पूछा । वह होशियार था । उसने उत्तर दिया राजन् ! स्वप्न बहुत अच्छा है । इसका फल होगा, आप अपने परिवार में दीर्घजीवी होंगे । राजा उसके उत्तर से प्रसन्न हुआ और उसे बहुमूल्य उपहार दिया । दोनों स्वप्नज्ञाताओं का फलित एक था, पर वाणी की कला भिन्न-भिन्न थी । प्रश्न १. आयुर्वेद, पद्य, व्यक्तित्व, उपहार, जो दीखता न हो, स्वाधीन, अनुयायी, अपशकुन, पति, और चुगली के लिए प्राकृत शब्द बताओ ? २. २. उग्गह, अवह, सारव समार, केलाय, सिम्प, बुक्क, ढिक्क, रीर, छज्ज, सह, बुड्डु, खुप्प, आरोल, वमाल, जीह, ओसुक्क, पुस, मूर, विर, पडिअग्ग, विढव, जुज्ज, जेम, चमढ, समाण, कम्मव, गढ, गल, मूर आदेश किन-किन धातुओं को होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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