________________
३७२
प्राकृत वाक्यरचना बोध
आच्छोटन करता है । झाडता है। प्रयोग वाक्य
___ गामवासिणो णयरे घयं विक्किणति सुरं किणति। सीहो वणे काहितो न भाइ, बीहइ वा । आइच्चो पइदिणं कहं णिलीअइ, णिलुक्कइ, णिरिग्घइ, लुक्कइ, लिक्कइ, ल्हिक्कइ, निलिज्जइ वा ? पलोभेण किं तुज्झमणो न विराइ, विलिज्जइ वा । पभायम्मि पक्खिणो रुजंति, रुण्टंति, रवंति वा। सो अप्पं हणइ, सुणइ वा । हिंसा अहिंसअस्स हिययं धुवइ, धुणइ वा । कयाइ दिवहो होइ, कयाइ रत्ती हुवइ, हवइ, भवइ वा। भाया भाऊओ णिव्वडइ । गुरूणं समक्खे सो णिव्वडइ। अहं पव्वयम्मि आरोहिउ पहुप्पामि, पभवेमि वा । तत्थ किं हूअं? मुणी साहणं कुणइ, करइ वा। गामवासिसु को णिआरइ ? सो मंतजवेण तस्स गई णिठ्ठहइ। वुड्ढो मग्गे लट्ठि संदाणइ । महिंदो घरे वावम्फइ । मुणी भविऊणं सो कहं णिवोलइ ? सो किमट्ठ णियम न पयल्लइ ? वाणरो रुक्खस्स डालि पयल्लइ । सो वत्थाई पीलुञ्छइ। हिन्दी में अनुवाद करो
___ अदिज्जमाणा वि अन्ने सि, अपरिभुज्जमाणा वि अत्तणा, गोविज्जमाणा वि पच्छन्ने, रक्खिज्जमाणा वि पयत्तेण, असंसयं नस्सइ एसा । किं वा दाणभोगरहियाए अवित्तिकम्मयरमेत्ताए संपयाए ति वा बीयं वि लक्खं देहि । कुबेरेण वुत्तं-जं देवो आणवेइ। अहो उदारया कुमारस्स त्ति विम्हिया कुसल निउणा । चित्तवट्टियं पुणो पुणो पिच्छंतेण पढियं कुमारेण
मयणधरिणी नूणं, दासीदसं वि न पावए ति-णयण-पिया पत्ता लोए तणं व लहुत्तणं ॥१॥ सलिलनिहिणो धूया धूलीसमा वि न सोहए
अमर महिला होलाठाणं इमीए पुरो भवे ॥२॥ प्राकृत में अनुवाद करो
एक नदी के तट पर एक विशाल वट वृक्ष था। उसकी डालियों पर पक्षी अपना-अपना घोंसला बनाकर आराम से रहते थे। एक बार वर्षा ऋतु में एक बंदरों का समूह आया और वृक्ष के नीचे ठहरा । वर्षा जोर से हुई। शीत के मारे बंदर कांप रहे थे। वृक्ष पर रहने वाले पक्षियों में से एक ने दया प्रकट करते हुए कहा-भाइयो! मैं अपने घोसले में आराम से रहता हूं। तुम्हारे पास भी मनुष्यों की तरह हाथ-पैर हैं। तुम अपने लिए हमारे से अच्छा घर बना सकते हो । घर के बिना तुम कष्ट क्यों उठा रहे हो ? उस पक्षी के विचार सुन कर बंदर क्रुद्ध हो गए । वृक्ष पर चढकर बंदरों ने पक्षियों के घोंसलों को नष्ट कर डाला।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org