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________________ धात्वादेश (२) ३७१ नियम ७५० (भुवे हो-हुव-हवा: ४।६०) भू धातु को हो, हुव और हव-ये आदेश विकल्प से होते हैं। भवति (होइ, हुवइ, हवइ, भवइ) होता है। नियम ७५१ (अविति हुः ४१६१) वित् प्रत्यय (भिक्षुशब्दानुशासन में पित् प्रत्यय ) छोडकर भू धातु को हु आदेश विकल्प से होता है। भवंति (हुति) । पित् प्रत्यय होने से हु आदेश नहीं हुआ। भवति (होइ)। - नियम ७५२ (पृथक्-स्पष्टे णिव्वड: ४१६२) पृथक्भूत और स्पष्ट अर्थ में भू धातु को णिव्वड आदेश होता है । पृथक् भवति (णिव्वइ) पृथक् होता है । स्पष्टो भवति (णिव्वडइ ) स्पष्ट होता है। नियम ७५३ (प्रभो हुप्पो वा ४।६३) प्रभु कर्तृक (प्र पूर्वक भू धातु) को पहुप्प आदेश होता है। प्रभवति (पहुप्पइ , पभवेइ) समर्थ होता है, पहुंचता है। नियम ७५४ (क्ते हः ४१६४) भू धातु को हू आदेश होता है क्त प्रत्यय परे हो तो । भूतं (हूअं) हुआ । अनुभूतं (अणुहूअं) । प्रभूतं (पहू)। नियम ७५५ (कृगेः कुणः ४।६५) कृ धातु को कुण आदेश विकल्प से होता है। करोति (कुणइ, करइ) करता है । नियम ७५६ (काणक्षिते णिआर: ४।६६) काना देखना विषय में कृ धातु को णिआर आदेश विकल्प से होता है। काणेक्षितं करोति (णिआरइ) कानी नजर से देखता है। नियम ७५७ (निष्टम्भावष्टमे पिठ्ठह-संदाणं ४।६७) निष्टम्भ अर्थ में और अवष्टम्भ अर्थ में कृ धातु को क्रमश: णिठ्ठह और संदाण आदेश विकल्प से होता है । निष्टम्भं करोति (णिठ्ठहइ) स्तब्ध करता है। अवष्टम्भं करोति (संदाणइ) सहारा लेता है, अवलम्बन लेता है। नियम ७५८ (श्रमे वावम्फः ४।६८) श्रम विषय में कृ धातु को वावम्फ आदेश विकल्प से होता है। श्रमं करोति (वावम्फइ ) श्रम करता है। नियम ७५६ (मन्युनौष्ठमालिन्ये णिवोलः ४१६६) क्रोध से ओष्ठ को मलिन करने के अर्थ में कृ धातु को णिव्वोल आदेश विकल्प से होता है। मन्युना ओष्ठं मलिनं करोति (णिव्वोलइ) क्रोध से होठ मलिन करता है। नियम (७६० शथिल्य-लम्बने पयल्लः ४७०) शैथिल्य और लम्बन विषय में कृ धातु को पयल्ल आदेश विकल्प से होता है। शिथली भवति (पयल्लइ) शिथिल करता है । ढीला करता है। नियम ७६१ (निष्पाताच्छोटे गीलुञ्छः ४७१) निष्पतन और आच्छोटन विषय में कृ धातु को पीलुञ्छ आदेश विकल्प से होता है। निष्पतति (णीलुञ्छइ) निष्पतन करता है। आच्छोटयति (णीलुञ्छइ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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