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प्राकृत वाक्यरचना बोध
नियम ७१० (अर्जे विढप्पः ४।२५१) अर्ज धातु को विढप्प आदेश विकल्प से होता है, क्य का लुक् होता है । अयंते (विढविज्जइ, अज्जिज्जइ)
नियम ७११ (ज्ञो पव्व-गज्जो ४।२५२) जानाति को कर्मभाव में णव्य और गज्ज-ये दो विकल्प से आदेश होते हैं । उसके योग में क्य का लुक होता है। ज्ञायते (णध्वइ, णज्जइ, जाणिज्जइ, मुणिज्जइ)
नियम ७१२ (व्याहगे हिप्पः ४।२५३) व्याहरति को भावकर्म में वाहिप्प आदेश विकल्प से होता है। उसके योग में क्य का लुक् होता है। व्याह्रियते (वाहिप्पइ, वाहरिज्जइ )
नियम ७१३ (आरमे राउप्पः ४।२५४) आरभते को भावकर्म में आढप्प आदेश विकल्प से होता है, उसके योग में क्य का लुक होता है। आरभ्यते (आढप्पइ, आढवीअइ)
नियम ७१४ (स्निह-सिचोः सिप्पः ४।२५५) स्निह और सिच् धातु को भावकर्म में सिप्प आदेश होता है। उसके योग में क्य का लुक् होता है। स्निह्यते (सिप्पइ) प्रीति करना। सिच्यते (सिप्पइ)
नियम ७१५ (ग्रहे चैप्पः ४।२५६) ग्रह, धातु को भावकर्म में घेप्प आदेश विकल्प से होता है। उसके योग में क्य का लुक होता है। गृह्यते (घेप्पइ, गिण्हिज्जइ)
नियम ७१६ (स्पृशेरिछप्प: ४।२५७) स्पृश् धातु को भावकर्म में छिप्प आदेश विकल्प से होता है। उसके योग में क्य का लुक होता है । स्पृश्यते (छिप्पइ, छिविज्जइ)
नियम ७१७ (क्यको र्य लुक ३।१३८) नाम धातु से होने वाले क्यङ क्यज्, क्यङष् प्रत्ययों के य का लुक् होता है। गरुआइ, गरुआअइ (अगुरुगुरुर्भवति, गुरुरिवाचरति वा इत्यर्थः) । दमदमशब्दंकरोति (दमदमाइ, दमदमाअइ) प्रयोग वाक्य
__ सोहव्व सत्तिमंतो सूरगहो अस्थि । चंदं चइऊण सव्वे गहा दिणअरस्स चोद्दहअंसाओ अंतरो अत्थंगया भवंति । मंगलगहस्स उवसमणट्ठ पवालं परिहियव्वं । बुधगहो वावरं कारवेइ । बहस्सइस्स रंगो पीओ भवइ । सुक्कस्स रंगो सुक्को होइ । सणी सणिसं चलइ। राहू चंदं गसइ। केऊ कूरगहो अत्थि । पुस्सणक्खत्तं सव्वेसु कज्जेसु सुहं भवइ । पत्तेयणक्खत्तस्स भिण्णाओ ताराओ संति । धातु प्रयोग
विमलाए जराइ धणं संचिणइ । महिंदो मोअगं संचुण्णइ । संजमी सावज्जजोगाओ संजमइ । सामाइयम्मि सावगो संजयइ । सो समासे पयाई
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