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________________ भावकर्म (२) शब्द संग्रह [ग्रह-नक्षत्र वर्ग] सूर्य--आइच्चो, दिणअरो चंद्रमा-~चंदो, हिमयरो मंगल-अंगारयो बुध-बुहो बृहस्पति-बहस्सई (पुं) शुक्र--सुक्को शनि--सणी (पुं) राहु--राहू (पुं) केतु---केऊ (पुं) नक्षत्र---णखत्तं तारा--तारा ग्रह-गहो धातु संग्रह संचिण----संग्रह करना, इकट्ठा करना संझाअ-ध्यान करना, चिंतन करना संचुण्ण-खण्ड-खण्ड करना, संणज्झ-कवच धारण करना चूर-चूर करना संतर-तैरना संजम-निवृत्त होना संताव-हैरान करना, तपाना संजय-सम्यक् प्रयत्न करना संथर-बिछोना करना संजोअ-संबद्ध करना, संयुक्त करना नियम ७०७ (बन्धो न्धः ४।२४७) बन्ध् धातु के न्ध को भावकर्म में ज्झ विकल्प से आदेश होता है, उसके योग में क्य प्रत्यय का लुक् होता है। बध्यते (बज्झइ, बन्धिज्जइ)। निवय ७०८ (गमादीनां द्वित्वम् ४।२४६) गम्, हस् भण्, छुप्, लम्, कथ् और भुज् धातुओं के अन्त्यवर्ण को भावकर्म में द्वित्व विकल्प से होता है । उसके योग में क्य प्रत्यय का लुक् होता है। गम्यते (गम्मइ, गमिज्जइ)। हस्यते (हस्सइ, हसिज्जइ) । भण्यते (भण्णइ, भणिज्जइ) । छुप्यते (छुप्पइ, शुविज्जइ) । रुद्यते (रुव्वइ, रुविज्जइ) । लभ्यते (लब्भइ, लहिज्जइ) । कथ्यते (कत्थइ, कहिज्जइ) । भुज्यते (भुज्जइ, भुज्जिज्जइ) नियम ७०६ (ह-क-त-वामीरः ४।२५०) ह, कृ, त और ज धातुओं के अन्त्य को ईर आदेश विकल्प से होता है, क्य का लुक होता है। ह्रियते (हीरइ हरिज्जइ) । क्रियते (कीरइ, करिज्जइ)। तीर्यते (तीरइ, तरिज्जइ) । जीर्यते (जीरइ, जरिज्जइ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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