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________________ कर्म शब्द संग्रह (परिवार वर्ग १) पिता-जणओ, बप्पो, पिऊ माता--माआ, जणणी, अम्मो दादा--अज्जयो, पिआमहो दादी-पिआमही, अज्जिआ परदादा--पपिआमहो, पज्जओ परदादी--पज्जिआ नाना--माआमहो नानी-माउम्मही परनाना-पमायामहो परनानी--पमाआमही मामा-माउलो मामी-मामी, मल्लाणी (दे०) मामे का बेटा-माउलपुत्तो आसिसा---आशीषः भिखारी, भीख मांगने वाला-भिक्खारी धातु संग्रह जिंघ---सूघना अरिह-पूजा करना, अर्चना करना सुमर-स्मरण करना कह-कहना दा-देना पीस-पीसना पतार----ठगना अव्यय संग्रह कह-कैसे किमवि--कुछ भी अइ (अति) अतिशय अईव (अतीव) विशेष • पुलिंग आकारान्त गोपा शम्ब, इकारान्त मुणि और उकारान्त साह शब्द को याद करो । देखो-परिशिष्ट १, संख्या २,३,५। कर्म-कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा जो वस्तु निष्पन्न करता है या जिस वस्तु पर क्रिया के व्यापार का फल पडता है उसे कर्म कहते हैं। कर्म की यह विस्तृत परिभाषा है। संक्षेप में कर्ता जो कुछ करता है वह कर्म है । कर्म के तीन भेद हैं---- १. निर्वयं-- इसका अर्थ है उत्पाद्य । उत्पाद्य वस्तुएं दो श्रेणी की होती हैं। (क) जो जन्म से उत्पन्न हो। जैसे-माता पुत्र को पैदा करती है। (ख) जो अविद्यमान हो और उसका निर्माण किया जाए। जैसे-मिस्त्री मकान बनाता है। २. विकार्य---वर्तमान वस्तु को अवस्थान्तरित करने से जो विकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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