SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ प्राकृत वाक्यरचना बोध अल्लिव, चच्चुप्प और पणाम आदेश विकल्प से होता है । अर्पयति (अल्लिवइ, चच्चुप्पइ, पणामइ) पक्ष में। (वापा ११६३) नियम १४ से अर्पयत्ति के आदि अ को ओ विकल्प से होता है । अर्पयति (ओप्पेइ, अप्पइ) अर्पण करता है । नियम ६८८ (यापेर्जवः ४१४०) णि प्रत्ययान्त या धातु (यापयति) को जव आदेश विकल्प से होता है। यापयति (जवइ, जावेइ) कालयापन करता है। नियम ६८६ (प्लावेरोम्वाल-पवालो ४१४१) प्लावयति को ओम्बाल और पव्वाल आदेश विकल्प से होते हैं। प्लावयति (ओम्वालइ, पव्वालइ, पावेइ) खूब भिजाता है। नियम ६६० (विकोशेः पक्खोड: ४।४२) नाम धातु विकोशयति को पक्खोड आदेश विकल्प से होता है। विकोशयति (पक्खोडइ, विकोसइ) खोलता है, फैलाता है। नियम ६९१ (रोमन्थेरोम्माल-वग्गोलौ ४४३) नाम धातु रोमन्थयति को ओग्गाल और वग्गोल—ये दो आदेश विकल्प से होते हैं। रोमन्थयति (ओग्गालइ, वग्गोलइ, रोमन्थइ) चबाई वस्तु को पुनः चबाता है । नियम ६९२ (प्रकाशेणुव्वः ४१४५) प्रकाशयति को गुव्व आदेश विकल्प से होता है। प्रकाशयति (णुब्वइ, पयासेइ) प्रकाशित करता है, चमकाता है। नियम ६९३ (कम्पेविच्छोल: ४।४६) कम्पयति को विच्छोल आदेश विकल्प से होता है । कम्पयति (विच्छोलइ, कम्पेइ) कंपाता है । नियम ६६४ (आरोहेर्वलः ४४७) आरोहयति को वल आदेश विकल्प से होता है। आरोहयति (बलइ, आरोवेइ, आरोहेइ) ऊपर चढाता है। नियम ६६५ (रजे राधः ४।४६) णि प्रत्ययान्त र धातु को राव आदेश विकल्प से होता है । रञ्जयति (रावेइ, रजेइ) खुशी करता है। नियम ६६६ (कमेणियः ४।४४) कम् धातु स्वार्थ में णि प्रत्ययान्त हो तो णिहुव आदेश विकल्प से होता है । कामयते (णिहुवइ, कामेइ)। नियम ६९७ (दोले रङ खोलः ४.४८) दुल् धातु स्वार्थ में णि प्रत्ययान्त हो तो रङ खोल आदेश विकल्प से होता है। दोलायते (रङ खोलइ, दोलइ) झूलता है। प्रयोग वाक्य गामवासिणो समक्खे का समस्सा अत्थि ? सुसीलो कम्मि दोगमुहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy